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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - D [६६०] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [भकारादि कपूर ८ भाग, छोटी इलायची के दाने २ । (१९२९) भैरवाञ्जनम् । भाग, सफेद चन्दन, समन्दर झाग, निर्मलीके फल, (वै. र. । ज्वर.; र. का. धे. । अ. १; र. रसौत और नागरमोथेका चूर्ण १-१ भाग लेकर रा. सु.। ज्वरा.) सबको गायके दूधमें घोटकर उसकी टिकिया | सततीक्ष्णकणागन्धमेकांशं जयपालकम् । बना लें और उसे कासीके पात्रमें रखकर कांसीकी | वैस्त्रियणितं जम्भवारिपिष्टं दिनाष्टकम् ॥ कटोरीसे ढक दें तथा दोनों के जोड़को उड़दके ! नेत्राञ्जनेन इन्त्याशु सर्वोपद्रवयुग्ज्वरम् ॥ आटेसे बन्द कर दें। तत्पश्चात् उसके नीचे दीपक जलावें । दीपक की बत्ती अंगूठे के समान मोटी ____ शुद्ध पारद, फौलादभस्म, पीपल का चूर्ण होनी चाहिये । ऊपर वाले बरतन पर भीगा हुवा और शुद्ध गन्धक १-१ भाग तथा शुद्ध जमाल कपड़ा रखकर उसे ठंडा रखना चाहिये। | गोटा १२ भाग लेकर सबको ८ दिन तक जम्भीरी नीबूके रसमें घोटकर अत्यन्त महीन चूर्ण बनावें। इसी प्रकार १ पहर तक दीपक जलाने के | पश्चात् पात्रके स्वांग शीतल होने पर सन्धि को इसे आंखमें लगानेसे उपद्रव सहित समस्त खोलकर. ऊपरके पात्र में लगे हुवे स्फटिक मणि ज्वर नष्ट हो जाते हैं। और सफेद होरेके समान स्वच्छ कर्पूर को (नोट--यह प्रयोग सावधानी पूर्वक बनाना निकाल लें। | और अनुभवी वैद्यके परामर्श से प्रयुक्त करना __ यही भीमसेनी कर्पूर है जो अनेक प्रयोगों में | चाहिये । जमाल गोटे में तेलका अंश बिल्कुल न पड़ता है। । रहने देना चाहिये ।) इति भकाराघानप्रकरणम्। अथ भकारादिनस्यप्रकरणम्। (४९३०) भस्मेश्वररसः (नस्य) छिकिकामेतदर्धा तु कट्फलं छिक्किकार्यकम् । (र. का. धे. । अ. १) मरिचं छिकिकातुल्यं वस्त्रपूर्त प्रकल्पयेत् ।। आरण्यगोमयं शुष्कं शुष्कं दग्ध्वा प्रकल्पयेत्। नस्येन रक्तिकामानं भक्षणेऽपि च तन्मतम् । तत्पुटेदर्कदुग्वेन शुष्कं वारत्रयेण च ॥ कफवातभवां पीडां शिरोहमासिकागताम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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