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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आसवप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [६५३] अथ भकाराद्यासवप्रकरणम्। (४९०२) भृङ्गराजासवः । मटकेमें भरकर उसका मुख बन्द करके रख दें और (ग. नि. । आसवा.) १५ दिन पश्चात् छानकर उसमें १०-१० तोले भृजराजरसद्रोणं गुडस्य द्वितुलां तथा। पीपल, जायफल, लौंग, दालचीनी, इलायची, तेजपात हरीतकीनां प्रस्थाई स्निग्ये भाण्डे निवेशयेत ॥ और नागकेसरका चूर्ण मिलाकर पुनः मटके में भरकर पक्षावं पिबेदेनं मात्रया च यथाबलम् । उसका मुख बन्द कर दें और १५ दिन बाद निकाजाते यस्मिन्पुनर्दत्वा पिप्पल्याश्च पलद्वयम् ॥ लकर छानकर बोतलोमें भरकर रखें। जातीफलं लवङ्गानि त्वगेलापत्रकेसरम् । इसके सेवनसे धातुक्षय और पांच प्रकारकी धातुक्षयं जयेत्पीतः कासं पश्चविधं तथा ॥ । कृशानां च महापुष्टिं कुरुते च महाबलम् । खांसी नष्ट होती है। तथा यह कृश मनुष्यों को कामद्धिं करोत्येव वन्ध्यानां पुत्रदो भवेत् ॥ अत्यन्त पुष्ट कर देता है । अत्यन्त बलकारक और ____ भंगरेका स्वरस ३२ सेर लेकर उसमें १२॥ | कामोद्दीपक है । इसके सेवनसे वन्ध्या स्त्रीको पुत्रकी सेर गुड़ और आधसेर हर्रका चूर्ण मिलाकर चिकने । प्राप्ति होती है। इति भकारावासवप्रकरणम् । अथ भकारादिलेपप्रकरणम् । (४९०३) भद्रादिलेपः दावर्वीहरिद्रामञ्जिष्ठाशारिवोशीरपद्मकम् । एतैरालेपनं कुर्याच्छङ्घकस्य प्रशान्तये ॥ ( यो. त. । त. ७३ ) सफेद चन्दन, सफेद कमल, मुलैठी, नीलभद्रं श्रियं पुण्डरीकं मधुकं नीलमुत्पलम् । कमल, पनाक, बेत, मूर्वा, लामज्जक (खस भेद ), पद्याख्यं वेतसं मूर्ती लामज्जकमथापि वा॥ । दारुहल्दी, मजीठ, सारिवा, खस और लालकमल For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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