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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हमकरणम् ] तृतीयो भागः [६३९] - (२) १००० शुद्ध भिलावोंको कूटकर ३२ । (४८६३) भार्गीगुडावलेहः सेर पानीमें पका और ८ सेर पानी शेष रहनेपर | (ग. नि. । लेहा.; भै. र.; वृ. मा.; च. द. । छान लें। हिक्कावासा.; व. से. । स्वरभेद.; यो. चि. म. । (३) उपरोक्त दोनों काथोंको एकत्र मिला- अ. ९; भा. प्र. । श्वासा.) कर उसमें ६। सेर गुड़ और १००० शुद्ध भिला शतं संग्राह्य भार्यास्तु दशमूल्यास्तथा परम् ।। वेकी पिसी हुई गिरी मिलाकर पुनः पकावें और शतै हरीतकीनां च पचेत्तोये चतुर्गुणे । गाढ़ा होने पर उतार लें। पादशेषे च तस्मिस्तु रसे वस्त्रपरिसुते ॥ (४) सांठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, आलोड्य च तुलां पूतां गुडस्य त्वभयां ततः । नागरमोथा, बायबिडंग, चीतामूल, सफेद चन्दन, पुनः पचेत्तु मृद्वनौ यावल्लेहत्वमागतम् ।। सेंधानमक, कूठ, अजमोद दालचीनी, तेजपात, शीते तु मधुनश्चात्र षट्पलानि प्रदापयेत् । इलायची और नागकेसरका चूर्ण ५-५ तोले तथा | त्रिकटु त्रिसुगन्धं च पालिकं च पृथक् पृथक् ।। नीलोत्पलका चूर्ण २० तोले लेकर उपरोक्त अवले कर्षद्वयं यवक्षारं सञ्चूर्ण्य प्रक्षिपेत्ततः। हमें मिलावें और उसे चिकने पात्रमें भरकर भक्षयेदभयामेकां लेहस्यार्धपलं लिहेत् ॥ रख दें। श्वासं सुदारुणं हन्ति कासं पञ्चविधं तथा । __इसके सेवनसे श्वित्र, औदुम्बर, दाद, ऋष्य- स्वरवर्णपदो ह्येष जठरानलदीपनः ।। जिहब, काकण, पुण्डरीक और चर्मकुष्ठादि अनेक पलोल्लेखागते माने न द्वैगुण्यमिहेष्यते । प्रकारके कुष्ठ, विस्फोटक, रक्तमण्डल, कष्टसाध्य हरीतकीशतस्यात्र प्रस्थत्वादाढकं जलम् ।। कापालिक कुष्ठ, पामा, विपादिका, ६ प्रकारकी __भरंगीकी जड़ ६। सेर, दसमूल ६। सेर अर्श, श्वास, खांसी, भगन्दर और अन्य अनेक प्रकारके कुष्ठ नष्ट होते हैं। और हरै १०० नग ( १ सेर ) लेकर भरंगी और __इसे गिलोयके काथके साथ सेवन करना दशमूलको अधकुटा कर लें और हर्रोको कपड़ेकी चाहिये और उष्ण तथा अम्ल पदार्थ न खाने । पाट पोटलीमें बांध लें एवं सबको एकत्र मिलाकर १०८ चाहिये। सेर पानीमें पकावें और २७ सेर पानी शेष रहने (मात्रा-~६ माशे।) पर हरों को अलग निकाल लें तथा काथको नोट-~-गदनिग्रहमें काथ्य द्रव्योंमें नीमकी छान लें। छालसे प्रारम्भ करके नागरमोथे तकके पदार्थाका | इस काथमें ६। सेर गुड़ मिलाकर छानें और तथा पीपलसे लेकर पुनर्नवा तकके पदार्थ का फिर उसमें उपरोक्त हर डालकर पुनः पकावें । अभाव है एवं प्रक्षेप द्रव्योंमें बिडंग, चीता, कूठ | जब लेहके समान गाढ़ा हो जाय तो अग्निसे नीचे और चन्दन नहीं लिखे । उतार लें और ठण्डा होने पर उसमें ६० तोले For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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