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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेहमकरणम् ] तृतीयो भागः। [ ६३५] अथ भकारादिलेहप्रकरणम् (४८५६) भगोत्कटाधवलेहः भल्लातकगुडः (१) (भै. र. । स्त्रीरोगा.) ( वृ. मा.; च, द.; व. से. । अर्श.; हा. सं.। स्था. ३ अ. ११) भद्रोत्कटतुलाकाथे पादशेषे विनिःक्षिपेत् । शर्करायाः पलत्रिंशचूर्णानीमानि दापयेत् ॥ ( गुडभल्लातक सं. १३३९ देखिये) वत्सकं धान्यकं मुस्तमुशीरं बिल्वमेव च। (४८५७) भल्लातकगुडः (२) शाल्मलीवेष्टकञ्चैव पिप्पली मरिचानि च ॥ बला चातिबला मांसी हीवेरं सदुरालभम् । (. मा.; च. द. । अर्शी.) एषाञ्च पलिकैर्भागेश्शूर्णैरेनं समाचरेत् ॥ दशमूल्यमृता भागी श्वदंष्ट्रा चित्रकं शठी ॥ सङ्कहग्रहणी हन्ति सूतिकाश्च सुदुस्तराम् । भल्लातकसहस्रं तु पलांशं काथयेद्बुधः। वहिश्च कुरुते दीप्तं शूलानाहविबन्धनुत् ॥ दत्त्वा गुडतुलामेकां लेहीभूतं समुद्धरेत् ॥ माक्षिकं पिप्पली तैलमौरुबूकं च दापयेत् । ६। सेर नागरमोथेको ३२ सेर पानीमें पकावें कुडवं कुडवं चात्र त्वगेलामरिचं तथा ॥ और जब ८ सेर पानी शेष रह जाय तो उसे अर्शः कासमुदावर्त पाण्डुत्वं शोफमेव च । छानकर उसमें ३० पल (१५० तोले) खांड मिला नाशयेद्वहिसादं च गुडो भल्लातकः स्मृतः ॥ कर पुनः पकावें । जब गाढ़ा हो जाय तो उसमें इन्द्रजौ, धनिया, नागरमोथा, खस, बेलगिरी, मोच दशमूल, गिलोय, भरंगी, गोखरु, चीतामूल रस, पीपल, काली मिरच, खरैटी, कंघी, जटामांसी, | और शठी (कचूर) ५-५ तोले तथा शुद्ध भिलावे सुगन्धबाला और धमासेका ५-५ तोले चूर्ण | १ हजार नग लेकर सबको अधकुटा करके ८ गुने डालकर उसे करछीसे अच्छी तरह मिला दें और पानीमें पकावें और चौथा भाग पानी शेष रहने ठंडा होने पर चिकने पात्रमें भरकर रख दें। पर छानकर उसमें ६। सेर गुड़ और ४० तोले अरण्डीका तेल मिलाकर पुनः पकावें जब गाढ़ा हो इसके सेवनसे संग्रहणी, सूतिका रोग, शूल, जाय तो उसे अग्निसे नीचे उतार कर उसमें पीपल, अफारा और मलावरोधका नाश होता तथा अग्निकी दालचीनी, इलायची और काली मिर्चका चूर्ण २०-२० वृद्धि होती है। तोले मिलावें और जब ठण्डा हो जाय तो उसमें (मात्रा-१ तोला ।) ४० तोले शहद मिलाकर सुरक्षित रक्खें । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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