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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चूर्णमकरणम् ] तृतीयो भागः । [ ६२९] इसे गुड़के शरबतके साथ सेवन करनेसे ग्रहणी सर्व वत्सकसप्तकर्षसहितं शुष्कं तु चूर्णीकृतं वासायाः स्वरसेन भावितमिदं त्रीन् पञ्च विकार नष्ट होते हैं । | नोट --- चरकादिमें इसे मस्तुके साथ पीनेके लिये लिखा है तथा लिखा है कि यह चूर्ण ग्रहणी, कामला, पाण्डु, ज्वर, प्रमेह, अरुचि और अतिसारको नष्ट करता है । (४८३८) भूनिम्बार्थ चूर्णम् (२) ( यो. र. 1 सन्निपाता. ) भूनिम्बमाक्षिकवचासहितं च कुर्या लेहं कणोषणर सोनसुराजिकाभिः । नेत्राञ्जनं च लवणोत्तमपिप्पलीभ्यां नस्यं वचामरिचहिङ्गुमधूकसारैः ॥ सन्निपात ज्वरमें- (१) चिरायता, बच, पीपल, कालीमिर्च, लहसन और राई समान भाग लेकर चूर्ण बनावें और उसे शहदके साथ चटावें । (२) सेंधा नमक और पीपल समान भाग लेकर अत्यन्त बारीक पीसकर आंखमें उसका अञ्जन लगावें । (३) बच, कालीमिरच, हींग और महुवेका गाँदै समान भाग लेकर चूर्ण बनावें और उसकी | नस्य दें | (४८३९) भूनिम्बाद्यं चूर्णम् (३) (ग.नि. व. से. र. र. 1 विद्रध्य.; ग. नि. । चूर्णा. ) भूनिम्बार्धपलं निशापलयुतं दार्वी पले द्वे तथा दार्धेन पुनर्नवां कुरु समां दार्वीसमः प्रग्रहः । सार्धं दुःस्पर्शपलं तु कटुका योज्या तदर्धेन वै अवाहं निशया समानममृता कर्षास्तु पञ्चैव तु ।' Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वा वासरान् । भूयस्तद्गुडवारिणा प्रतिदिनं पीतं पुरस्थे रवौ पुंसां विद्रधिनाशनं तु कथितं प्रोक्तं स्वयं ब्रह्मणा ॥ चिरायता आधा पल, हल्दी १ पल (५ तोले), दारूहल्दी २ पल, पुनर्नवा ( बिसखपरा ) १ पल, अमलतास २ पल, धमासा १॥ पल, कुटकी पौन पल ( ३|| तोले ), असगन्ध १ पल, गिलोय ६। तोले और कुड़ेकी छाल ८|| तोले लेकर यथाविधि चूर्ण बनावें और उसे ३ या ५ दिन बासेके रस में घोटें । इसे गुड़के शरबतके साथ सेवन करने से विद्रधि नष्ट होती है । ( मात्रा- - ३-४ माशे ) (४८४०) भूनिम्बाद्योलम् ( वृ. मा. व. से. ; वृ. नि. र. । ज्वर.; वै. र. । ज्वरा . ) भूनिम्बः कारवी तिक्ता वचा कटूफलजं रजः । एतदुद्धूलनं श्रेष्ठं सन्ततस्वेदसम्भवे ।। चिरायता, कलौंजी, कुटकी, बच और कायफल समान भाग लेकर बारीक चूर्ण बनावें । ज्वर में आवश्यकतासे अधिक पसीना निकलता हो तो शरीरपर इस चूर्णकी मालिश करनी चाहिये । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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