SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 622
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णपकरणम् ] तृतीयो भागः। [६२७] भरंगी, पीपल, करञ्जकी छाल, पीपलामूल | पिप्पली पिप्पलीमूलं कृष्णजीरकपत्रकम् । और देवदारु समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । नागकेसरतालीसमम्लवेतसकं तथा ॥ इसे तिलके काथके साथ सेवन करनेसे रक्त- द्विकर्षमात्राण्येतानि प्रत्येकं कारयेद् बुधः । गुल्म नष्ट होता है। मरिचं जीरकं विश्वमेकैकं कर्षमात्रकम् ॥ ( मात्रा--३-४ माशे ।) दाडिमं स्याश्चतुःकर्ष त्वगेला चार्धकार्षिकी । (४८३१) भाादियोगः (१) बीजपूररसेनैव भावितं सप्तवारकम् ॥ (हा. सं. । स्था. ३ अ. ५७) एतच्चूर्णीकृतं सर्व लवणं भास्कराभिधम् । भार्गीरास्नाकर्कटकचूर्ण वा मधुसंयुतम् । शाणप्रमाणं देयं तु मस्तुतक्रसुरासवैः॥ लेहो वा बालकस्यापि श्वासकासनिवारणः ॥ वातश्लेष्मभवं गुल्मं प्लीहानमुदरं क्षयम् । भरंगी, रास्ना और काकड़ासिंगीके चूर्णको अर्शीसि ग्रहणी कुष्ठं विवन्धं च भगन्दरम् ।। शहदमें मिलाकर चटानेसे बालकांकी खांसी और | शोफ शूलं श्वासकासमामदोषं च द्रुजम् । स्वासका नाश होता है। मन्दाग्निं नाशयेदेतद्दीपनं पाचनं परम् ॥ (१८३२) भाग्यांदियोगः (२) सर्वलोकहितार्थाय भास्करणोदितं पुरा॥ (वृ. मा.; वृ. नि. र.; योग. र. । हिक्का.) सामुद्रलवण १० तोले, सञ्चल (कालानमक) हिकायासी पिबेद्धार्की सविश्वामुष्णवारिणा। ६। तोले, विडलवण, सेंधानमक, धनिया, पीपल, नागरं वा सिताभाीसौवर्चलसमन्वितम् ॥ पीपलामूल, कालाजीरा, तेजपात, नागकेसर, ताली___ भरंगी और सांठके समान भाग-मिश्रित सपत्र और अमलबेत २॥---२॥ ताले, काली पूर्णको गर्म पानीके साथ सेवन करने से या सेठ मिर्च, सफेद जीरा और सेठ ११-१३ तोला, मिसरी, भरंगी और सञ्चल (काला नमक ) का चूर्ण | अनारदाना ५ तोले तथा दालचीनी और इलायची खानेसे हिचकी और श्वास नष्ट होता है । ७||-७।। माशे लेकर यथाविधि चूर्ण बनावें और __भास्करचूर्णम् उसे बिजौ रे नीबूके रसकी सात भावना देकर रखें। (वा. भ. । उ. अ. १३) अजनप्रकरणमें देखिये।। इसे ५ माशेकी मात्रानुसार, मस्तु, सुरा या (४८३३) भास्करलवणचूर्णम् तक्र अथवा किसी रोगोचित आसवके साथ (शा. ध.। खं. २ अ. ६; यो. र. । गुल्मा.; | | खाना चाहिये। यो. र.; वृ. मा.; व. से. । अजीर्णा.; च. द.; - मै. र. र. र. । अग्निमांध.) इसके सेवनसे वातकफज गुल्म, तिल्ली, उदसामुद्रलवर्ण कार्यमष्टकर्षमितं बुधैः। ररोग, क्षय, अर्श, ग्रहणी रोग, कुष्ठ, विबन्ध, भगपचासौवर्चलं ग्रामं विडं सैन्धवधान्यके ॥ । न्दर, शोथ, शूल, श्वास, खांसी, आमविकार, For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy