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घृतप्रकरणम्
तृतीयो भागः।
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(३०३३) बिमेदादिलेहः
____ मेदा, महामेदा, बंसलोचन, पीपल और सफेद (ग. नि. । कासा.)
खांड समान भाग लेकर चूर्ण करें और उसे घं उभे मेदे तुगाक्षीरी पिप्पली सितशर्करा। तथा शहद में मिलाकर अवलेह बनालें । घृतक्षौद्रं च लेहोऽयं कासं जयति पैचिकम् ॥ यह अवलेह पित्तज खांसीको नष्ट करता है।
इति दकारादिलेहप्रकरणम् ।
अथ दकारादिघृतप्रकरणम्
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दृष्टव्य
दन्तीमूल १ पल ( ५ तोले ), निसोत ५ १-घृत और तैलादिमें द्रव पदार्थी के लिये तोले, तथा हर्र, बहेड़ा, आमला, अतीस, चीता १६० तोलेका प्रस्थ मान कर द्रव्यांका परिमाण और बायबिडंग २॥२॥ तोले लेकर सबको लिखा गया है अत एव हिन्दी अर्थ में द्रव पदा- पानी के साथ पीसलें फिर १ कुडव (४० तोले) थीका जो परिमाण सेरों या तोलों आदि में लिखा घीमें यह कल्क और १६० तोले सेहुण्ड (सेंड) है परिभाषाके अनुसार उसका द्विगुण करने की का दूध मिलाकर पकावें । जब दूध जल जाय तो आवश्यकता नहीं है।
धृतको छान लें। २-जिन स्नेहांका पाक केवल काथ से लिखा
इस धीमें से केवल एक बिन्दु रोगीको पिला
| नेसे विरेचन होकर दुस्साध्य श्लीपद रोग भी नष्ट है और कल्कादिका परिमाण नहीं बतलाया गया हो जाता है। उनमें परिभाषानुसार कल्क स्नेहका छठा भाग लिखा
(नोट---घी पकाते समय उसमें २ सेर पानी है, परन्तु जहां काथके साथ दूध इत्यादि भी लिखे हैं भी डालना चाहिये।) वहां साधारण नियमानुसार चौथा भाग कल्क
(३०३५) दन्त्यादिवृतम् (१) 'लिखा है।
(वा. भ. । चि. स्था. अ. १९) (३०३४) दन्तीघृतम्
दन्त्याढकमपां द्रोणे पक्त्वा तेन घृतं पचेद । (वं. से. । विद्र.; र. र. । श्लीप.) धामार्गवपले पीतं तदुद्धाधोविशुद्धिवृत् ॥ दन्तीमूलपलं दद्यात्रिसन्मूलपलं सथा ।
४ सेर दन्तीमूलको ३२ सेर पानी पका त्रिफलातिविषाचित्रविडङ्गार्धपलोन्मितम् ॥ जब ८ सेर पानी शेष रह जाय तो उसे धन स्नुहीक्षीरसमायुक्तं घृतस्य कुडवं पचेत् ।। | उसमें २ सेर घी और १० तोले तुरई का काम विन्दुमात्रोपयोगेन वेगासमुपजायते ॥ मिलाकर पकाइये । जन सद पाना काय दुरि लीपदं इन्ति वृक्षमिन्द्राशनिर्यथा। घृतको छान लीजिए।
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