SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 618
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - पूर्णप्रकरणम् ] हतीपो भागः। [६१३] नागरमोथा और पीपलके समानभाग-मिश्रित | कर्ष मेथीवेल्लजीरसर्षपान्कोलमात्रतः। चूर्णको शहदके साथ सेवन करनेसे कफज खांसी । ततो यवान्यर्धपलं पिप्पलीरामठोषणम् ॥ शीघ्र ही नष्ट हो जाती है। बिडसैन्धवजीरं च किर्माणीसज्ञकं तथा । (४८१८) भद्रादिपूर्णम् कर्षमयाणं विज्ञेयं वैधविधाविशारदैः ॥ (वृ. नि. र. । मूत्राघात.) सर्वमेकत्र सञ्चूर्ण्य यथासात्म्यं तु भक्षयेत् । सदाभद्राश्मभिन्मूलं शतावर्याश्च चित्रकम् । दना सह तथा खादेत्सर्वांतीसारनाशनम् ॥ रोहिणीकोकिलाख्यौ च क्रौञ्चस्थूलत्रिकण्टकम्।। दो दो टुकड़े करके भूने हुवे मिलावे १० श्लक्ष्णं पिष्टं मुरापीतं भूत्राघातनिषूदनम् ॥ | तोले, सेठ ५ तोले, हर्र २॥ तोले, कर वे की खम्भारीकी छाल, पखानभेद, शतावर, चीते | गिरी १ तोला और मेथी, बायबिडंग, जीरा तथा की जड़, कुटकी, काकोली, कमलगट्टा और बड़े | सरसे ७॥-७॥ माशे, अजवायन २॥ तोले, पीपल, गोखरु समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । भुनी हुई हींग, काली मिर्च, बिड नमक, सेंधानमक, इसे सुराके साथ सेवन करनेसे मूत्राघात नष्ट काला जीरा और खुरासानी अजवायन १-१। तोला हो जाता है। लेकर चूर्ण बनावें। (मात्रा-२-३ माशे।) (४८१९) भर्जितहरीतकीयोगः इसे यथोचित मात्रानुसार दहीके साथ सेवन (वृ. नि. र. । ग्रहणी.) करनेसे समस्त प्रकारके अतिसार नष्ट होते हैं। घृतसम्भर्जिता पथ्या पिप्पलीगुडसंयुता। ( मात्रा-३ माशे।) भक्षयेद्वा त्रिद्धन्ति भक्षिता चानुलोमनी॥ | (४८२१) भल्लातकादिचूर्णम् (२) हर्रको धीमें भूनकर पीस लें और फिर उसमें (ग. नि. । अर्श. ) उसके बराबर पीपलका चूर्ण तथा गुड़ मिला लें । तिलारुष्करसंयोगं भक्षयेदनिवर्धनम् । इसे सेवन करनेसे ग्रहणी नष्ट होती और कुष्ठरोगहरं श्रेष्ठमर्शसां नाशनं परम् ।। वायु अनुलोम होता है। काले तिल और शुद्ध भिलावा समान भाग निसोतका चूर्ण खानेसे भी वायु अनुलोम | लेकर चूर्ण बनावें । होता है। __इसे सेवन करनेसे अग्नि दीप्त होती और कुष्ठ ( मात्रा-६ माशेसे ९ माशे तक । अनुपान उष्ण जल ।) तथा अर्शका नाश होता है। (४८२०) भल्लातकादिचूर्णम् (१) (४८२२) भल्लातकादिचूर्णम् (३) (यो. र.; धू. नि. र. । अतिसारा.) (यो. र. । क्रिमि.) भल्लातानां द्विखण्डानां द्वे पले भजिते क्षिपेत् । । भल्लातको वा दध्ना वा शुण्ठ्याः पलं तु तक्याः पलाई सुमनाफलम्॥ चिश्चाम्लेन हरेत्कृमीन् । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy