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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२२] भारत-भैषज्य-रत्नाकर [भकाररादि १ मास तक भंगरेका स्वरस सेवन करने | ईख (गन्ने, को अनिमें सेककर उसका रस और दुग्धाहार पर रहनेसे बलवर्णयुक्त १०० वर्ष | निकालें और उसमें चूहेकी मीमन मिलाकर रोगी की आयु प्राप्त होती है। को पिला दें। (४८१३) भृष्टमुद्गादिकषायः यह प्रयोग मूत्रकृच्छ्रको अत्यन्त शीघ्र नर (ग. नि. । छर्य ; वृ. मा. । छZ.) कर देता है। कषायो भृष्टमुद्गस्य सलाजमधुशर्करः । (४८१५) भेदनीयकषायदशक: छर्घतीसारदाइन्नो ज्वरनः संप्रकाशितः ।। (च. सं. । अ. ४ सूत्रस्थान) भुनी हुई मूंगके काथमें धानकी खीलांका सुवहार्कोस्बूकानिमुखीचित्राचित्रकचिरचूर्ण तथा शहद और मिश्री मिलाकर पीने से छर्दि, बिल्वशक्निीसकुलादनीस्वर्णक्षीरिण्य इति दशेअतिसार, दाह और ज्वर नष्ट होता है। मानि भेदनीयानि भवन्ति ॥ (४८१४) भृष्टेक्षुरसपानम् निसोत, आक, अरण्ड, लांगली (कलिहारी), (वृ. नि. र. । मूत्रकृच्छा .) दन्ती, चीता, करन, शंखिनी, कुटकी और स्वर्ण भृष्टास्वरसं ग्राह्यमाखुविद्विहितं पिबेत् । क्षीरी । इन दश ओषधियों के समूहको भेदनीय नाशयेन्मूत्रकृच्छ्राणि सब एव न संशयः ॥ । कषायदशक कहते हैं । शति भकारादिकषायप्रकरणम् । अथ भकारादिचूर्णप्रकरणम्। (४८१६) भद्रदादिचूर्णम् | सार सेवन करनेसे अफारा और उदावर्त नष्ट ( वृ. नि. र. । आनाहोदावर्ता.) होता है। भद्रदारु धनं मूवी हरिद्रा मधुकं तथा। ( व्यवहारिक मात्रा-३ माशे ।) कोलप्रमाणं तु पिवेदन्तरिक्षेण वारिणा ॥ (४८१७) भद्रमुस्तादिचूर्णम् देवदारु, नागरमोथा, मूर्वा, हल्दी और मुलैठी (वृ. नि. र.। कास.) समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। भद्रमुस्ताकणाचूर्ण समांशं मधुना सह । इसे वर्षाजलके साथ आधा कर्षकी मात्रानु- निहन्ति भक्षितं शीघ्र श्लेष्मकासं न संशयः॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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