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अपायकरणम् ]
हतीवो भागः।
[६१९]
चिसयता, कुटकी, सुगन्धवाला, लाल चन्दन, | वासागुञ्चिधनयोजनपल्यनन्ताधनिया, हरी, दशमूल, खस, सांठ और करौंदा । पायन्तिकाद्विरजनी त्रिफलाजगन्धाः॥ सम्मन भाग लेकर काथ बनावें ।
कृष्णेन्द्रग्रलमुरवारुणिसोमराजीइसे सेवन करनेसे वातज ज्वर नष्ट होता है।
बेल्लामिशृङ्गमलयूसरदारुविधाः।
पत्तपयकशवावरिसप्तपणे(४७९९) भूनिम्बादिकषायः (२)
रेभिः कृतो विधिवदेष महाकपायः॥ (ग. नि. । विस्फोट.) पीतो जयत्यखिलधातुगतानि कुष्ठाकर्षयं च भूनिम्बं तदर्धे निम्बमेव च।
न्येतत्पशाम्यति सशोणितमामवातम् ।
पाण्डुप्रमेहपिटिकाकृमिशोथदुष्टकायस्तयोस्त्रहं पीतः सर्वविस्फोटनाशनः ॥
नाडीभगन्दरव्रणाऱ्यांदगण्डमालाः ॥ २॥ तो. चिरायता और ११ तोला नीमकी
चिरायता, नीमकी छाल, खैरसार, असना छाल लेकर दोनोंका काथ बनाकर ३ दिन पीनेसे सर्व प्रकारका विस्फोटक रोग नष्ट होता है।
वृक्षकी छाल, अमलतास, मुलैठी, पटोल (परवल),
कुटकी, कूठ, पाठा, बासा, गिलोय, नागरमोथा, (४८००) भूनिम्बादिकषाय: (३) मजीठ, अनन्तमूल, त्रायमाणा, हल्दी, दारुहल्दी, (ग. नि. 1 ज्वरा.)
हर्र, बहेड़ा, आमला, बन तुलसी, पीपल, इन्द्रजौ, भूनिम्बकल्याणकनिम्बच्छिन्ना
ऋद्धि, भुईआमला, बाबची, बायबिडंग, चीता, रास्नाम्बुदोशीरकनिम्बकं च ।
भंगरा, कठूमर (कठगूलर), देवदार, सोंठ, पतङ्ग,
पनाक, शतावर, और सतौना ( सप्तपर्ण) समान भिषकसुमाताकटुकायवासा
भाग लेकर काथ बनावें। द्वन्द्वज्वरं हन्ति कृतः कषायः॥ चिरायता, पित्तपापड़ा, नीमकी गिलोय,रास्ना,
___इसे सेवन करनेसे समस्त धातुगत कुष्ठ, नागरमोथा, खस, नीमकी छाल, बासा, कुटकी और
| वातरक्त, आमवात, पाण्ड, प्रमेह, पिडिका, कृमि,
शोथ, दुष्ट नाडीव्रण, भगन्दर, व्रण, अर्बुद (रसौली) जवासा समान भाग लेकर काथ बनावें ।
और गण्डमाला का नाश होता है। यह काथ द्वन्द्वज ज्वरको नष्ट करता है ।
(४८०२) भूनिम्बादिकाथः (२) (४८०१) भूनिम्बादिकाथः (१)
(वै. जी. । विला. ४; वृ. नि. र.; यो. र. । (वृ. मा. । कुष्ठा.)
अम्लपित्ता.) भूनिम्बनिम्बखदिरासनराजा
भूनिम्बनिम्बत्रिफलापटोली यष्टीपटोलकटुरोहिणीकृष्ठपाठाः। । वासामृतापर्पटभृजराजैः।
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