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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कषायप्रकरणम् तृतीयो भागः। [६१७] सधो निहन्ति विषमज्वरसन्निपात भरंगी, पित्तपापड़ा, सांठ, बासा, पीपल, जीर्णज्वरश्चयथुशीतकवहिसादम् ॥ चिरायता, नीमकी छाल, गिलोय, नागरमोथा और भरंगी, नागरमोथा, पित्तपापड़ा, पोखरमूल, धामन वृक्षकी छाल समान भाग लेकर काथ सोंठ, हर्र, पीपल और दशमूल समान भाग लेकर बनावें। काथ बनावें। यह काथ जीर्णज्वर, धातुगतज्वर, विषमज्वर ___ यह काथ विषमज्वर, सन्निपात, जीर्ण और उपद्रव युक्त भयङ्कर ज्वरादि समस्त ज्वरोको नष्ट करता है। ज्वर, शोथ, शीत और अग्निमांद्यको नष्ट ___यदि इसे केवल दो दिन ही सेवन कर करता है। लिया जाय तो रोगी यमराजके फन्देसे छूट (४७८९) भाग्र्यादिकाथ: (४) | जाता है। (व. से. । कासा.; यो. र. । कासश्वासा.; वृ. । (४७९१) भाादिक्काथः (६) नि. र. । कासा.; वृ. यो. त. । त. ७८) (यो. र.; . नि. र. । ज्वर.) भार्डी सनागरां सिंहों कुलित्थं मूलकं तथा। भार्यब्दपर्पटकधन्वयवासविश्वपिबेपिप्पलीचूर्णेन कासश्वासं व्यपोहति ॥ । भूनिम्बकुष्ठकणसिंह्यमृताकषायः । भरंगी, सांठ, कटेली, कुलथी और मूली | जीर्णज्वर सततसन्ततको निहन्यासमान भाग लेकर काथ बना लीजिये। दन्येधुकं सहतृतीयचतुर्थको च ॥ इस काथमें पीपलका चूर्ण मिलाकर पीनेसे भरंगी, नागरमोथा, पित्तपापड़ा, धमासा, खांसी और श्वास का नाश होता है । सांठ, चिरायता, कूठ, पीपल, कटेली और गिलोय समान भाग लेकर काथ बनावें । (४७९०) भार्यादिकाथः (५) ___ यह काथ जीर्णज्वर, सतत, सन्तत, अन्येयुः ( यो. र.; वृ. नि. र. । ज्वरा.) तृतीयक और चातुर्थिक ज्वरको नष्ट करता है। भार्गीपर्पटविश्ववासक (४७९२) भाादिकाथः (७) ___ कणाभूनिम्बनिम्बामृता (यो. र.; वृ. नि. र. । सन्निपाता.) मुस्ताधवकभेषजैस्तु भार्गीपुष्करपथ्यानिदिग्धिकानागरामृताकाथः। । दशभिर्हन्तीह सर्वज्वरान् । अपनयति तन्द्रिकमिमं निःसंशयं प्रगे पीतः॥ जीर्णान्धातुगतांस्तथा च भरंगी, पोखरमूल, हर्र, कटेली, सोंठ, और विषमान्सोपद्रवान्दारुणान् गिलोय समान भाग लेकर काथ बनावें । क्वाथोऽयं यदि युग्मवासर-- यह काथ तन्द्रिक सन्निपातको अवश्य नष्ट मितं दत्तो यमादक्षति ॥ कर देता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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