________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कषायप्रकरणम्
हतीयो भागः।
[६१८]
D
कर दें।
तेषां या स्वरसः कुम्भं प्रपघेत तमष्टभागमधु- कुष्ठाः कृमिदोषघ्नं दुष्टशुक्रविशोधनम् ॥ संमयुक्तं द्विगुणवृतमघात; तत्मयोगादर्षशतम- भल्लातककाथपाने मन्त्रोऽयं पठ्यते कचित् ॥ जरं वयस्तिष्ठतीति समानं पूर्वेण ॥ | " वरुण त्वं हि देवानाममृतं परिकल्पसे ।
शुद्ध भिलावाँको कूटकर एक मजबूत और | आयुरारोग्यसिद्धयर्थमस्माकं वरदो भव ॥" स्निग्ध हाण्डीमें भर दें। इसकी तलीमें दो चार
| ५ मिलावोंको* कूटकर उनका काथ बनाकर छोटे छोटे छिद्र कर देने चाहिये । तदनन्तर एक
ठण्डा कर लें और ओष्ठ तथा तालुको घी लगाकर दूसरी स्नेहभावित हाण्डीको कण्ठ पर्यन्त भूमिमें
पी जायं । दूसरे दिन इसी प्रकार १० भिलावोंका गाढ़कर उसके ऊपर पहिली हाण्डीको रक्खें और
और तीसरे दिन १५ भिलावांका काथ पियें । दोनेके जोड़को काली मिट्टी से मजबूत कर दें
इसी प्रकार प्रति दिन ५-५ भिलावे बढ़ाते रहें और तथा ऊपरवाली हाण्डीके मुख पर ढकना ढककर
जव ७० पर पहुंच जायं तो प्रति दिन ५-५ उसे भी काली मिट्टीसे मजबूत कर दें। ऊपरवाली
कम करने लगे और ५ पर आकर प्रयोग समाप्त हाण्डीके चारों ओर भी काली मिट्टीका लेप कर देना चाहिये । तत्पश्चात् ऊपर वाली हाण्डी पर
__औषध पचने पर दूधके साथ घृतयुक्त भात अरण्य उपलेकी अग्नि जलावें । जब समझें कि अब भिलावांका सम्पूर्ण रस निकल आया होगा
| खाना चाहिये। तब अग्नि बन्द कर दें और हाण्डीके स्वांग शीतल यह रसायन प्रयोग मेध्य, बलिपलित नाशक, होने पर नीचेकी हाण्डीमें जो रस जमा हुवा हो
| दुष्ट-शुक्रशोधक तथा कुष्ठ, अर्श और कृमिरोगको उसे निकाल लें और उसमें उसका आठवां भाग | नष्ट करनेवाला है। शहद तथा दो गुना घी मिलाकर सेवन करें। भल्लाककाथ पीनेके समय कोई कोई
इस प्रयोगसे १०० वर्ष तक वृद्धावस्था | “ वरुण........वरदो भव" मन्त्र भी पढ़ते हैं। नहीं आती।
(४७८२) भल्लातकादिकायः (१) (४७८१) भल्लातकरसायनम्
(व. से. । श्वासा.) (. मा. । रसायना.)
भल्लातकमधुपर्णीपथ्यादशमूलनागरकायः । पश्चभल्लातकांश्छित्वा साधयेद्विधिवज्जले। तमके कफप्रधाने शस्तः श्वासे च मारुतजे ॥ कषायं तु पिबेच्छीत घृतेनाक्तोष्ठतालुकः ।। पञ्चवृद्धया पिबेधावत्सप्तति हासयेसतः।
* सुश्रुत संहिता चि अ. ६ में एक भिलावेसे प्रार
म्भ करके प्रतिदिन १-१ बढ़ाते हुवे ५ तक और फिर जीर्णेऽधादोदनं शीतं घृतक्षीरोपसहितम् ।।
। ५-५ बढ़ाते हुवे ७० भिलावे तक सेवन करनेके लिये एतद्रसायन मेध्यं वलीपलितनाशनम् । लिखा है।
For Private And Personal Use Only