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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथभकारादिकषायप्रकरणम्। (४७७६) भद्रमुस्तादिकाथः । (४७७८) भद्रोदुम्बरिकादियोगः (यो. र. । ज्वर.; भा. प्र. म. ख. । बालरोग.; (ग. नि. । कुष्ठा.) वृ. यो. त. । त. १४४) | भद्रासज्ञोदुम्बरीमूलतुल्यं भद्रमुस्ताभयानिम्बपटोलमधुकैः कृतः। दत्त्वा मूलं क्षोदयित्वा मलप्वाः। कायः कोष्णः शिशोरेप निःशेषज्वरनाशनः ॥ सिद्धं तोये पीतमुष्णे सुखोष्णं नागरमोथा, हरे, नीमकी छाल, पटोल | ___स्फोटांश्छ्त्रेि पुण्डरीके च कुर्यात् ।। ( परवल ) और मुलैठीका मन्दोष्ण काथ पिलानेसे पं दग्धं च मातङ्गजं वा बालकांके समस्त प्रकारके ज्वर नष्ट हो जाते हैं । मिन्ने स्फोटे तैलयुक्तः प्रलेपः ॥ (४७७७) भद्रादिकाथः दन्तीमूल, कठूमर ( कठगूलर ) की जड़ (वृ. नि. र. । ज्वर.) और बाबचीकी जड़का मन्दोष्ण काथ सेवन करभद्राधान्याकशुण्ठीभिर्गुडूचीमुस्तपद्मकैः। नेसे स्वित्र ( सफेद कोढ़) और पुण्डरीक कुष्ठके रक्तचन्दनभूनिम्बपटोलवृषपौष्करैः॥ स्थानमें छाले पड़ जाते हैं। उन छालांको फोड़ कटुकेन्द्रयवारिष्टभाजीपर्पटकैः समम् । कर चीते या हाथीकी खालकी भस्म तेलमें मिलाकोथः पातनिषेवेत सर्वशीतज्वरापहम् ॥ कर लगानेसे कुष्ट नष्ट हो जाता है । कायफल, धनिया, सोंठ, गिलोय, नागरमोथा, (४७७९) भल्लातकक्षीरम् पपाक, लाल चन्दन, चिरायता, पटोल, बासा (च. सं । चि. अ. १) (अडूसा ), पोखरमूल, कुटकी, इन्द्रजौ, नीमकी भल्लातकान्यनुपहतान्यनामयान्यापूर्णरसछाल, भरंगी और पित्तपापड़ा समान भाग लेकर | प्रमाणवीर्याणि पक्कजाम्बवप्रकाशानि शुचौ काथ बनावें । शुक्रे वा मासे सना यवपल्वे माषपल्वे वा . इसे प्रातःकाल सेवन करनेसे समस्त शीतचर निधापयेत् , तानि चतुर्मासस्थितानि सहसि नष्ट होते हैं। सहस्ये वा मासे प्रयोक्तुमारभेत शीत For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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