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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अवलेहमकरणम् ] (३०२७) देवदावयवलेहः ( वा. भ. । चि. स्था. अ. ३ ) देवदारुझठी रास्ताकर्कटाख्या दुरालभाः । पिप्पली नागरं तं पथ्या धात्री सितोपला || काजा सितोपला सर्पिः शृङ्गी धात्रीफलो द्भवा । तृतीयो भागः । मधुतैलयुता लेहाखयो वातानुगे कफे ॥ (१) देवदारु, कचूर, रास्ना, काकड़ासिंगी और धमासा । (२) पीपल, सोंठ, नागरमोथा, हर्र, आमला, और मिश्री । (३) धानकी खील, मिश्री, घी, काकड़ासिंगी और आमला । यह तीनों अवलेह शहद और तेलमें मिलाकर सेवन कराए जावें तो बात कफज खांसी नष्ट हो जाती है । द्राक्षासितामा क्षिक संप्रयुक्ता (३०२८) द्राक्षादियोगः ( वृ. नि. र. । अजी. ) विदशते यस्य तु शुक्तमा दशन्ति हृत्कोष्ठ - गतामलाश्च । लाभ वास सुखं भेव || यदि आहार भली प्रकार न पचकर विदग्ध हो जाता हो और हृदय तथा उदर इत्यादि में दाह होती हो तो दाख और मिश्री को अथवा हरे को पीसकर शहदके साथ मिलाकर चाटना चाहिये । (३०२९) द्राक्षाद्यवलेह: (१) (बृ. नि. र. । सन्निपा.; वं. से. । मदात्यय. ) स्विममामले पिडा द्राक्षया सह मेळयेत् । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ४९ ] विश्वभेषणसंयुक्तं मधुना सह लेहयेत् ॥ तेनास्य शाम्यति श्वास: कासो मूर्च्छारुचि स्तथा।। स्विन्न ( उसीजे हुवे ) आमलों को गुठली निकालकर पीस लीजिए और फिर उसमें उसके बराबर बीजरहित मुनक्काकी पिट्ठी और सोंठका चूर्ण मिला दीजिये | इसे शहद में मिलाकर चाटने से रोगीकी मूर्च्छा, श्वास, खांसी और अरुचि नष्ट होती है । (३०३०) द्राक्षाद्यवलेह : (२) ( हा. सं. । स्था. ३ अ. १२ ) द्राक्षामलक्याः फलं पिप्पलीनां कोळं सखर्जूरयुतो च लेहः । सपित्तकासक्षयनाशकारी सकामलं पाण्डुहलीमकं च ॥ दाख ( मुनक्का ) आमला, पीपल, बेर और खजूर को पीसकर ( शहद में मिलाकर ) चटनी बना लीजिये । इसके सेवन से पित्तज खांसी, क्षय, कामला, पाण्डु और हलीमक रोग नष्ट होता है । (३०३१) द्राक्षाद्यवलेह : ( ३ ) ( वृ. नि. र. । अपस्मार. ) द्राक्षादारुनिशायुतं समधुकं कृष्णा विशाळा त्रिवृत् । पृथ्वीका त्रिफला asiटुका श्रीचन्दनं बालकम् || चातुर्जातकनिम्बकाञ्चनतुगाताळीसपत्रं घनम् । मेद्वे सुरदारुकुष्ठकमलं धात्री समङ्गा बळा ॥ भाङ्गकोलकदा डिमाम्ल सहितं काश्मर्यशृङ्गा रकम । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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