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अवलेहमकरणम् ]
(३०२७) देवदावयवलेहः
( वा. भ. । चि. स्था. अ. ३ ) देवदारुझठी रास्ताकर्कटाख्या दुरालभाः । पिप्पली नागरं तं पथ्या धात्री सितोपला || काजा सितोपला सर्पिः शृङ्गी धात्रीफलो
द्भवा ।
तृतीयो भागः ।
मधुतैलयुता लेहाखयो वातानुगे कफे ॥
(१) देवदारु, कचूर, रास्ना, काकड़ासिंगी और धमासा ।
(२) पीपल, सोंठ, नागरमोथा, हर्र, आमला, और मिश्री ।
(३) धानकी खील, मिश्री, घी, काकड़ासिंगी और आमला । यह तीनों अवलेह शहद और तेलमें मिलाकर सेवन कराए जावें तो बात कफज खांसी नष्ट हो जाती है ।
द्राक्षासितामा क्षिक संप्रयुक्ता
(३०२८) द्राक्षादियोगः
( वृ. नि. र. । अजी. ) विदशते यस्य तु शुक्तमा दशन्ति हृत्कोष्ठ -
गतामलाश्च ।
लाभ वास सुखं भेव ||
यदि आहार भली प्रकार न पचकर विदग्ध हो जाता हो और हृदय तथा उदर इत्यादि में दाह होती हो तो दाख और मिश्री को अथवा हरे को पीसकर शहदके साथ मिलाकर चाटना चाहिये ।
(३०२९) द्राक्षाद्यवलेह: (१)
(बृ. नि. र. । सन्निपा.; वं. से. । मदात्यय. ) स्विममामले पिडा द्राक्षया सह मेळयेत् ।
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[ ४९ ]
विश्वभेषणसंयुक्तं मधुना सह लेहयेत् ॥ तेनास्य शाम्यति श्वास: कासो मूर्च्छारुचि
स्तथा।।
स्विन्न ( उसीजे हुवे ) आमलों को गुठली निकालकर पीस लीजिए और फिर उसमें उसके बराबर बीजरहित मुनक्काकी पिट्ठी और सोंठका चूर्ण मिला दीजिये |
इसे शहद में मिलाकर चाटने से रोगीकी मूर्च्छा, श्वास, खांसी और अरुचि नष्ट होती है । (३०३०) द्राक्षाद्यवलेह : (२)
( हा. सं. । स्था. ३ अ. १२ ) द्राक्षामलक्याः फलं पिप्पलीनां कोळं सखर्जूरयुतो च लेहः । सपित्तकासक्षयनाशकारी सकामलं पाण्डुहलीमकं च ॥
दाख ( मुनक्का ) आमला, पीपल, बेर और खजूर को पीसकर ( शहद में मिलाकर ) चटनी बना लीजिये । इसके सेवन से पित्तज खांसी, क्षय, कामला, पाण्डु और हलीमक रोग नष्ट होता है । (३०३१) द्राक्षाद्यवलेह : ( ३ ) ( वृ. नि. र. । अपस्मार. ) द्राक्षादारुनिशायुतं समधुकं कृष्णा विशाळा त्रिवृत् । पृथ्वीका त्रिफला asiटुका श्रीचन्दनं
बालकम् || चातुर्जातकनिम्बकाञ्चनतुगाताळीसपत्रं घनम् । मेद्वे सुरदारुकुष्ठकमलं धात्री समङ्गा बळा ॥ भाङ्गकोलकदा डिमाम्ल सहितं काश्मर्यशृङ्गा
रकम ।
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