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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [५८८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [बकारादि (४६८५) बलादितैलम् पिष्टैरेतैः पचेसैलं मस्तुक्षीरं चतुर्गुणम् । (हा. सं. । स्था. ३ अ. २४) वातपित्तज्वराज्जीर्णात्तेनाभ्यक्तः प्रमुच्यते ॥ बलाकाथाढकं क्षिप्त्वा दधि तत्राढकं क्षिपेत् । खरैटीकी जड़, मुलैठी, मजीठ, कमल, पद्माक कुलत्थाढकयूषं तु सौवीरकरसाढकम् ॥ सफेद चन्दन, समुद्रफेन, सुगन्ध बाला, हल्दी, गेरु आढकं च तथैरण्डतैलं तत्र प्रदापयेत् । और नीलोत्पलका समान भाग मिश्रित चूर्ण २० एकत्र कृत्वा विपचेत योजयेदौषधं च तत ॥ तोले, तिल तैल २ सेर तथा मस्तु (दहीका तोड़) शतपुष्पा देवदारु पिप्पली गजपिप्पली।। और दूध ८-८ सेर लेकर सबको एकत्र मिलाकर त्रिसुगन्धि मुरामांसी कुष्ठं द्विपञ्चमलकम ॥ पकावें । जब तैलमात्र शेष रह जाय तो उसे चूणे विनिक्षिपेत् तत्र सिद्धं तदवतारयेत् । । छान ले । पाने चाभ्यङ्गे च योज्यं निरूहे बस्तिकर्मणि । इसकी मालिशसे वातपित्तज जीर्णज्वर नष्ट हन्ति वातामयं सर्व श्रेष्ठं गुणगणपदम् ॥ होता है। खरैटीका काथ ८ सेर, दही ८ सेर, कुलथी। | (४६८७) बलायं यमकम् का काथ ८ सेर, सौवीरक काञ्जी ८ सेर और (व. से. । शिरो.) अरण्डका तेल ८ सेर लेकर सबको एकत्र मिलावें और उसमें निम्न लिखित चीजोंका कल्क मिला बलाजीवन्तिनिर्यासैः पयोभिर्यमकं पचेत् । कर पकावें। जब तैलमात्र शेष रह जाय तो | जीवनीयैश्च नस्यैश्च सर्वजनू रोगजित् ॥ छान लें। ___ खरैटी और जीवन्ती १-१ सर लेकर दोनों कल्कद्रव्य--सोया, देवदारु, पीपल, गज- को २६ सेर पानीमें पकायें और ४ सेर पानी शेष पीपल, दालचीनी, इलायची, तेजपात, मुरामांसी, रहने पर छानकर उसमें आधा सेर तिलका तैल, कूठ और दशमूल का चूर्ण समान भाग मिश्रित | आधा सेर घी, १ सेर दुध और १० तोले जीव१ सेर। नीयगणका कल्क मिलाकर पकायें और तैलमात्र ___ इसे पीने तथा इसकी मालिश और बस्ति शेष रहनेपर छान लें। करनेसे समस्त वातजरोग नष्ट होते हैं। इसकी नस्य लेनेसे समस्त ऊर्ध्वजत्रुगत रोग (४६८६) बलाचं तेलम् । | नष्ट होते हैं। (व. से. । ज्वरा.; वृ. नि. र. । ज्वरा.) (जीवनीयगण--जीवन्ती, काकोली, क्षीरबलामधूकमञ्जिष्ठापद्यपद्मकचन्दनैः । काकोली, मेदा, महामेदा, जीवक, ऋषभक, मुद्समुद्रफेनहीबेररजनीगैरिकोत्पलैः ।। | गपर्णी, माषपर्णी और मुलैठी।) For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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