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तैलपकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[५८७]
दारचीनी, बड़ी इलायची, अगर, केसर, गन्धव्य ! धातुक्षीणे मर्महते मयितेऽभिहते तथा । ( इलायची, सफेद चन्दन, केसर, अगर, मुरामांसी, भने श्रमाभिपन्ने च सर्वथैव प्रयुज्यते ॥ कंकोल, जटामांसी, कचूर, चीरकी छाल, प्रन्थि- | एतदाक्षेपकादोंश्च वातव्याधीनपोहति । पर्ण, कस्तूरी, नख, जुन्बेदस्तर, खस और लवं- प्रत्यग्रधातुः पुरुषो भवेत्सुस्थिरयौवनः॥ गादि ) और जीवनीय गण । ( सब समान--भाग
राज्ञामेतत्प्रकर्तव्य राजमात्राश्च ये नराः । मिश्रित आधा सेर ।)
मुखिनः सुकुमाराश्च धनिनश्चापि ये नराः ।। नोट---कस्तूरी आदि तैल छाननेके बाद
बला (खरैटी ) की जड़का काथ, दशम्मिलानी चाहिये ।
लका काथ, जौका काध, बेरका काथ, कुलथीका ___ यह तैल समस्त धातुगत सर्व वातज रोगांको | काथ आर दूध १६-१६ सेर, तिलका तेल नष्ट करता है।
२ सेर तथा निम्न चीज़ोंका कल्क २० तोले (४६८४) बलातैलम् (४)
लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकावें और जब
तैल मात्र शेष रह जाय तो उसे छान लें । (ग. नि. । तैला.; सु. सं. । चि. अ. १५; वृ.. मा., र. र.; च.द. । वा. व्या.; शा. ध. । ख. कल्क-द्रव्य---मधुरादि गण ( काकोली, २ अ. ९)
क्षीरकाकोली, मेदा, महामेदा, जीवक, ऋषभक, बलामूलकषायस्य दशमृलोकृतस्य च ।।
ऋद्धि, वृद्धि, मुद्गपणा, माषपर्णी, गिलोय, काकड़ायवकोलकुलत्यानां काथस्य पयसस्तथा ।।
सिंगी, बंसलोचन, पपाक, मुनक्का, जीवन्ती, अष्टावष्टौ शुभा भागास्तैलादेकस्तदैकतः।
| मुलैठी और प्रपौण्डरीक ( पुण्डरिया ), सेंधा, पचेदावाप्य मधुरं गणं सैन्धवसंयुतम् ।।
अगर, राल, बलाबीज (बीजबन्द ), देवदारु, तथागरुं सर्जरसं सबलं देवदारु च ।
| मजीठ, सफेद चन्दन, इलायची, कूठ, सारिवा, मञ्जिष्ठां चन्दनं कुष्ठमेलां कालानुसारिवाम् ॥
| सतावर, असगन्ध, सोया और पुनर्नवा ( विसशतावरी चाश्वगन्धां शतपुष्पां पुनर्नवाम। | खपरा ) | तत्साधुसिद्धं सौवर्णे राजते मृन्मयेऽपि वा। इसके सेवनसे समस्त वातजरोग नष्ट होते प्रक्षिप्य कलशे सम्यक् स्वनुगुप्तं निधापयेत् ।। हैं । यह तैल प्रसूता स्त्री, अल्पवीर्य मनुष्यों और बलातैलमिदं ख्यातं सर्ववातविकारनुत् ॥
गर्भकी इच्छा रखने वाली स्त्रियोंके लिये हितकारी यथावलमतो मात्रां मूतिकायै पदापयेत् ।। या च गर्भार्थिनी नारी क्षीणशुक्रश्च यः पुमान्।।
हैं । धातुक्षीणता, मर्माघात, भग्न, श्रम और आक्षेपवृन्द माधव में अटामांसी, शेळ्य, तेजपात और
कादि वातज रोग इसके सेवनसे नष्ट होते और दोनों सारिवा अधिक लिखी है.।
धातुवृद्धि होती तथा यौवन स्थिर रहता है।
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