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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतपकरणम् ] तृतीयो भागः। [५७९] - - - -- काय----बला (खरैटी ), अतिबला (कंघी), कृत्वा कपाय पेष्याय दधात्तामलकी सटीम् । शालपर्णी, पृष्टपर्णी, बनभंटा और गोखरु । प्रत्येक | द्राक्षां पुष्करमूलं च मेदामामलकानि च ॥ १३ तोले ४ माशे लेकर सबको कूटकर १६ / घृतं पयश्च तत्सिद्धं सर्पिरहरं परम् । सेर पानीमें पकायें और जब ४ सेर पानी शेष रह क्षयकासपशमनं शिरःपावरुजापहम् ।। जाय तो उसे छान लें। काय-खरैटी, गोखरु, बनभटा, पृश्निपर्णा, ___अन्य द्रव पदार्थ---गिलोयका रस, चांगे कटेली, शालपणी, नीमकी छाल, पित्तपापड़ा, नागर रीका रस, शतावरका रस, मूका रस और घृत | मोथा, त्रायमाना और धमासा । सब चीजें समान कुमारीका रस आधा आधा सेर । कमलनालका | भाग मिश्रित २ सेर । पानी १६ सेर । शेष काथ स्वरस, नारियलका पानी और केलेकी जड़का स्वरस | ४ सेर । २०-२० तोले । दूध ८ सेर । कल्क---असगन्ध, हरे, बहेड़ा, आमला, कल्क-भुई आमला, शठी (कचूर), मुनका, रेणुका, देवदारु, एलबालक, शालपर्णी, अनन्तमूल, पोखरमूल, मेदा और आमला । सब चीजें समान हल्दी, दारुहल्दी, दोनों प्रकारको सारिवा, फूल. भाग-मिश्रित १० तोले । प्रियङ्गु, नीलोत्पल, बड़ी इलायची, मजीठ, दन्तीमूल, विधि--१ सेर घी, ४ सेर दूध, उपरोक्त अनारदाना, नागकेसर, तालीसपत्र, बनभंटा, चमे- काथ और कल्क एकत्र मिलाकर पकावें। जब लोके ताजे फूल, बायबिडंग, पृष्टपर्णी, कट, सफेद | घृतमात्र शेष रह जाय तो छान लें। चन्दन और पाक ११-१। तोला। इसके सेवनसे वर, क्षय, खांसी, शिरशूल विधि--२ सेर घी, उपरोक्त काथ, द्रव | और पार्श्व शूलका नाश होता है । पदार्थ, और कल्क एकत्र मिलाकर पकावें । जब (४६६४) यालचारीघृतम् घृतमात्र शेष रह जाय तो उसे छान ले। (भै. र. । बाल.; च. द. । बाल. ६३; वृ. इसके सेवनसे उन्माद, अपस्मार, प्रवृद्ध पित्त, मा. । ग्रहण्य.) दाह, और तृष्णाका नाश तथा बुद्धि, मेधा और स्मृतिकी वृद्धि होती है। चारीस्वरसे सपिश्छागक्षीरसमं पचेत् । (४६६३) बलाद्यं घृतम् (५) कपित्यव्योषसिन्धत्यसमगोत्पलबालकैः ।। (वृ. यो. त.। त. ७६; च. द.। राजय. अ. सविल्वधातकीमोचैः सिद्धं सर्वातिसारनुत् । १०; च. सं. । चि. अ. ३; वृ. मा.। । ग्रहणी दुस्तरां इन्ति बालानान्तु विशेषतः ॥ राजय.; व. से.; वृ. नि. र.; यो. कल्क---कैथका गूदा, सांठ, मिर्च, पीपल, र. । ज्वरा.) | सेंधानमक, लज्जालु, नीलोत्पल, सुगन्धबाला, बेलबसां श्वदंष्ट्रां बृहती कलशों धावनी स्थिराम् । गिरी और धायके फूल समान भाग मिश्रित १० निम्बं पर्पटकं मुस्तं त्रायमाणां दुरालभाम् ॥ । तोले । चूकेका स्वरस ८ सेर, बकरीका दूध २ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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