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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ५७२ ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [बकारादि द्विपलांशाः पलान्यष्टौ भल्लातकफलानि च । । __इसमें से नित्य प्रति ११ तोला अवलेह सूरणं द्वादश प्रोक्तं षट्पलं वृद्धदारुकम् ॥ | सेवन करनेसे वातज, पित्तज, कफज, द्विदोषज एतानि खण्डशः कृत्वा द्विद्रोणेऽपां विपाचयेत् । और सन्निपातज संग्रहणी तथा कामला, कुष्ठ, पादशेषन्तु कुर्वीत पचेदगुडतुलां भिषक् ॥ प्रमेह, अर्श, पाण्डुरोग, भगन्दर, शोथ और गुल्म कन्दस्तिक्तस्त्रिद्वहिर्मुस्तैलामरिचत्वचम् । का नाश होता है। नागकेसरचूर्णश्च ोकैकं द्विपलोन्मितम् ॥ इसे सभी ऋतुओं में सेवन कर सकते हैं । एतानि मूक्ष्मचूर्णानि गुडमध्ये विनिःक्षिपेत् ।। (४६४९) बाहुशालगुडः (२) भक्षयेद्गुटिकां प्राज्ञः कर्षाशां पथ्यभुङ्नरः॥ ( श्रीबाहुशालगुडः ) वातपित्तकफमायां द्विदोषां सान्निपातिकाम् ।। (शा. ध. । खं. २ अ. ७; वृ. नि. र.; यो. र.। ग्रहणी नाशयत्याशु चक्रपाणियथाऽसुरान् ॥ अर्शो.; भै. र.;* च. द.; वृ. मा.; भा. प्र.; कामलाकुष्ठमेहार्शः पाण्डुरोगभगन्दरान् ।। र.र.; धन्व.; व. से. । अर्शी.; ग. नि.।' श्वयथूदरगुल्मांश्च जयेत्सम्यक्पयोजितः ॥ लेहा.; वृ.यो. त. । त. ६९; यो. " सर्वास्तुषु कर्त्तव्यो गुडोऽयं बाहुशालिकः।" चि. म.२ । पाका. १) नोट- इस प्रयोगकी ओषधियां तो लगभग । इन्द्रवारुणिका मुस्तं शुण्ठी दन्ती हरीतकी। "बाहुशालगुड (२)" के समान ही हैं परन्तु त्रिवृत् सठी विडङ्गानि गोक्षुरश्चित्रकस्तथा ॥ उनके परिमाणमें बहुत अन्तर है, इसी लिये दोनों तेजोहा च द्विकर्षाणि पृथग् द्रव्याणि कारयेत् । मूरणस्य पलान्यष्टौ वृद्धदारु चतुष्पलम् ॥ प्रयोग पृथक् पृथक् लिखे हैं । चतुःपलं स्याद्भल्लात: काययेत्सर्वमेकतः । निसोत, कुटकी, दन्तीमूल, गोखरु, चीता, जलद्रोणे चतुर्थाशं गृह्णीयात्काथमुत्तमम् ॥ कचूर, इन्द्रायनमूल, नागरमोथा, सेठ, बायबिडंग और हर्र १०-१० तोले तथा शुद्ध भिलावा ४० * योगरत्नाकरके पश्चात् वाले ( भै र. से यो. चि. म. तकके ) ग्रन्थोंमें:तोले, सूरण (जिमिकन्द) ६० तोले, और विधारा (१) समस्त द्रव्यांका परिमाण इस पाठमें दिये हुवे मूल ३० तोले लेकर सबको कूटकर ६४ सेर परिमाणसे द्विगुण लिखा है परन्तु विधारा ६ पानी में पकावें और १६ सेर पानी बाकी रह जाय पल ही लिखा है जो उक्त पाठके अनुसार “ पल तो उसे छानकर उसमें ६। सेर गुड मिलाकर पुनः होना चाहिये। पकावें । जब वह गाढ़ा हो जाय तो उसमें (२) त्रिकुटेकी जगह विदारीकन्द लिखा है। __विदारीकन्द, परवल, निसोत, चीता, नागर (३) शहदका अभाव है। (४) दन्तीके स्थानमें विदारीकन्द लिखा है। किस मोथा, इलायची, कालीमिरच, दालचीनी और नाग- किसी अन्यमें दन्तीके स्थानमें कुटकी भी लिखी है। केसरका चूर्ण १०-१० तोले मिलाकर ठंडा करके १-गदनिग्रहमें भिलावेका अभाव है। चिकने पात्र में भरकर रख दें। २-योगचिन्तामणिमें इसका नाम सरणपाक लिखा है For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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