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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णपकरणम् ] तृतीयो भागः। [५६३] - - (४६१३) यन्यूलादियोगः (४६१६) बलादिचूर्णम् (३) (वृ. नि. र.। अति.) (यो. त. । त. ८०) चम्बलपत्रं सम्पिट रात्रौ जीरद्वय हितम। । सघृतमधुबलात्रयस्य चूणे कर्षमा भवेद्भक्ष्यं कफातीसारनाशनम् ॥ समधुसिताघृतमुचटोद्भवं वा । बबूलके पत्ते और दोनों जीरे समान भाग समधुकमय माषमुद्गपण्योंलेकर चूर्ण बनावें। रमृतलतामलकत्रिकण्टकं वा।। इति कथितमिदं हि पुष्पिताग्रा इसमेंसे नित्य प्रति रात्रिके समय ११ तोला । चरणचतुष्टयवेष्टनेन शिष्टैः। चूर्ण सेवन करनेसे कफातिसार नष्ट होता है। अभिमतमसकृव्यवायभाजा(अनुपान-उष्ण जल ।) मिह खलु योगचतुष्कमाविकल्प्य ॥ (४६१४) बलादिचूर्णम् (१) काम शक्तिकी वृद्धि के लिये:(व. से. । श्लीपद.) (१) बला (खरैटी), अतिबला (कंघी) और नागबला (गंगेरन-गुलशकरी) के समान भाग मिश्रित क्षीरेण प्रातरुत्याय पिवेद्यस्तु बलाद्वयम् । चर्णको घी और शहदमें मिलाकर सेवन करें । सक्षीरं श्लीपदाजन्तुरसाध्यादपि मुच्यते ॥ अथवा -- प्रातःकाल बला और अतिबला (खरैटी तथा । (२) उटङ्गणके बीजोंके चूर्णको समान भाग कंघी) के चूर्णको दूधके साथ सेवन करनेसे असाध्य | खांडमें मिलाकर उसे घी और शहदके साथ सेवन स्लीपद भी नष्ट हो जाता है। करें। या(मात्रा-३ माशे । ) (३) मुलैठी और माषपणी तथा मुद्गपर्णीका चूर्ण अथवा (४६१५) बलादिचूर्णम् (२) (४) गिलोय, आमला और गोखरुका चूर्ण ( यो. र. । प्रदर.; भा. प्र. । म. खं. प्रदर.) सेवन करें। बलाकतिकाख्या या तस्या मूलं सुचूर्णितम्।। यह चारों प्रयोग कामी पुरुपोंके लिये हितलोहितप्रदरे खादेच्छर्करामधुसंयुतम् ॥ कारी हैं । कंघी (अतिबला) के चूर्णको समानभाग (४६१७) बलादिचूर्णम् (४) खांडमें मिलाकर शहदके साथ सेवन करनेसे रक्त (व. से. । स्त्री. ) प्रदर नष्ट होता है। | बलामतिबलां चैव शर्करां मधुयष्टिकाम् । (मात्रा-बलाचूर्ण ३ माशे, खांड ३ माशे। ) । क्षीरं मधुघृतं चैव पीतं गर्भपदं भवेत् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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