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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [५२२] भारत-भैषज्य-रलाकरः। [पकारादि (४४७०) प्रवालप्रयोगः (२) । (४४७३) प्रवालमारणम् (२) (सु. सं. । उत्त. त. अ. ४४ पाण्डु चि. ) (र. रा. सु. । पूर्वखण्ड) मवालमुक्ताअनशचूर्ण मौक्तिकस्य विधिप्रोक्तः लिह्यात्तथाकाञ्चनगैरिकोत्त्यम् ॥ पवालेऽपि तथा विधिः। प्रवाल (मूंगा), मोती, सुरमा, शंख और गेरु मुक्ताभस्मकी विधिसे ही प्रवाल की भी भस्म का चूर्ण समान भाग लेकर सबको गुलाबजल बनती है। आदिमें पीसकर पिष्टी बनावें। ('मुक्ताभस्म विधि' मकारादि रसप्रकरणमें इसके सेवनसे पाण्डु नष्ट होता है। | देखिये।) (मात्रा-१ माशा) । (१४७४) प्रवाललक्षणगुणाः (४४७१) प्रवालप्रयोगः (३) । ( आ. वे. प्र. । अ. १३; र. र. स.; र. चं.) (च. सं. । चि. अ. २६ त्रिमर्मीय.) पकविम्बीफलच्छायं वृत्तायतमवक्रकम् । पित्तथा तण्डुलधावनेन स्निग्धमत्रणकं स्थूलं प्रवालं सप्तधा शुभम् ।। पाण्डुरं धूसरं सूक्ष्मं सत्रणं कण्डरान्वितम् । प्रवालचूर्ण कफमूत्रकृच्छे। निर्भारं शुभ्रवर्णश्च मवालं नेष्यते सप्तधा ।। प्रवाल (मूंगे ) के चूर्णको चावलांके पानी प्रवालं मधुरं साम्लं कफपित्तादिदोषनुत् । के साथ सेवन करनेसे कफज मूत्रकृच्छ्र नष्ट होता वीर्यकान्तिकरं स्त्रीणां धृते मङ्गलदायकम् ।। क्षयपित्तात्रकासनं दीपनं पाचनं लघु । (मात्रा-१ माशा) विपभूतादिशमनं विद्रुमं नेत्ररोगहत् ।। (४४७२) प्रवालमारणम् (१) जिस मुंगेका रंग पकी कन्दूरीके समान चम(र. सा. सं । पूर्वखण्ड) कदार लाल हो, जो आकारमें गोल बड़ा और वीदग्धेन प्रवालञ्च भावयित्वा तु हण्डिके। अवक्र (सीधा ) तथा स्थूल हो एवं स्पर्श में मध्येऽपि तक्रसहितं स्थापयेत्तां निरोधयेत् ॥ चिकना हो और जिसमें व्रण न हो वह उत्तम चुल्ल्यामग्निप्रतापेन म्रियते प्रहरद्वये ॥ होता है। ____ मुंगेको स्त्रीके दूधमें घोटकर एक हाण्डीमें जो मूंगा हल्का पीला, धुंधला या सफेद हो, थोडासा तक डालकर उसमें रखें और उसका | जो बारीक और वजनमें हल्का हो तथा जिसमें मुख बन्द करके उसे चूल्हे पर चढ़ाकर उसके छिद्र और रेखाएं हां वह मूंगा अच्छा नहीं नीचे २ पहर तक अग्नि जलावें तो मूंगेकी भस्म ! माना जाता । बन जायगी। मूंगा मधुर, किश्चिदम्ल, कफपित्तनाशक, For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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