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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [५१६] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [पकारादि - - - शुद्ध पारेको १ मास तक रातदिन निरन्तर | त्रिफला, बासा, पान, बला (खरैटी ), सेभलकी धतूरेके तैलमें और १० दिन लाल चीतेके तैलमें | भूसली, कांचकी जड़, गोदुग्ध, लज्जाल, केलेकी पकावें । अग्नि इतनी होनी चाहिये कि जिससे | जड़, सौंफ, घृतकुमारी, अजमोद, गोरखमुण्डी, १ दिन रातमें ५ तोले तेल जल जाय । तत्पश्चात् | नागबला, मुलैठी और हाथीके मदमें घोटकर गोला उस शुद्ध पारे में उसका आठवां भाग सोनेके वर्क | | बनावें । और उसे कपड़ेमें बांधकर दोलायन्त्र मिलाकर इतना घोटें कि वर्क पारेमें मिल जायं । विधिसे १ दिन पोस्तके डोदेके काथमें पकावें। फिर उसमें पारेके बराबर गन्धक मिलाकर कज्जली तदनन्तर उसे २-२ दिन समुद्रशोषके तेल, बनावें और उसे आतशी शीशीमें डालकर मकर- | धतूरेके बीजेकि तैल, गांजेके बीजेकि तैल और प्वज बनानेकी विधिके अनुसार १२ पहर बालुका जायफलके तैलमें घोटकर गोला बनावें और उसपर यन्त्रमें पकावें । एवं बालके बिल्कुल शीतल हो | तीन कार मिट्टी करके पहिलेकी भांति हो गढ़ेमें जाने पर उसमें से शीशीको निकालकर उसे साव- रखकर २ उपलेकी अग्निमें स्वेदित करें । और धानी पूर्वक तोड़कर उसमें से सिन्दूरके समान फिर स्वांग शीतल होने पर निकालकर उसे खस, लाल रंगके रसको निकाल लें। त्रिसुगन्ध, (दालचीनी, इलायची, तेजपात ), इसे पीसकर ३ दिन पोस्तके डोदेके काथमें, अगर, कस्तूरी, केतकी, हारसिंहार और कमलके ३ दिन भांगके बीजेकि तेलमें और १ दिन जाय- स्वरस या काथमें ३-३ दिन घोटकर सुरफलके तेल में एवं १-१ दिन ताल मखाने और | क्षित रक्सें। बिदारी कन्दके रसमें घोटकर गोला बनावें और | इसमें से ६ रत्ती औषधमें १॥ रत्ती कपूर उसे अरण्ड आदिके पत्तों में लपेटकर भूमिमें गढ़ा और १॥ रत्ती लांगका पूर्ण मिलाकर मिश्री और खोदकर उसमें रख दें तथा गोलेपर २ अंगुल शहद के साथ खाकर ऊपरसे दूध पीना चाहिये। मिट्टी चढ़ा दें। और फिर उस पर २ अरने उपले इसके सेवन काल्में दूध अधिक पीना और रखकर उनमें आग लगा दें। | अम्ल पदार्थोसे परहेज करना चाहिये। तदनन्तर उसके स्वांग शीतल होने पर उसे निकाल कर पीस लें और उसमें अभ्रकभस्म, ___ यह रस त्रिदोष नाशक, कामिनी मदभजक, बैकान्तमस्म, जावित्री और लौंग २-२ भाग, | वशीकरण, अत्यन्त स्तम्भक, नपुंसकता नाशक और सीसाभस्म ३ भाग, चांदीभस्म, कान्तलोहमस्म, वाजीकरण है। शुद्ध बम्नाग, केसर, दालचीनी, इलायची, तेज- इसे सेवन करने वाले पुरुष, स्त्रीसमागम पात, बंगभस्म, अफीम और स्वर्णमाक्षिक भस्म करने पर भी बलहीन नहीं होते। आधा आधा भाग मिलाकर सबको १ पहर शंख- इसे सेवन करनेवाला पुरुष यदि बीसमागम पुष्पीके रसमें और ३-३ दिन विदारीकन्द, | नहीं करता तो उसके नेत्र बिगड़ जाते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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