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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारत-भैषज्य रत्नाकरः । [५०८] उसमें अन्य ओषधियोंका अत्यन्त महीन चूर्ण | मिलाकर सबको उपरोक्त रसमें सात दिन खरल करें फिर मूसलीके रस में धूपमें ३ भावना दें | तदनन्तर उसे गोस्तनाकार मूपामें रखकर उसका मुख बन्द करके उसपर ७ कपरमिट्टी करदें और फिर उसे सुखाकर लघुपुटमें फूंक दें । [ पकारादि यदि इतना करने पर भी औषधी गरमी शान्त न हो तो चन्दनके पानी में कपूर मिलाकर उसके शरीर पर लेप करें तथा रुई, मोगरा, चमेली, पुन्नाग और मौलश्रीके फूल चारपाई पर बिछाकर उस पर रोगीको लिटा दें और उसके शरीर पर बार बार चन्दनका लेप करते रहें। इसके अतिरिक्त सुन्दरी युवतिके आलिंगन, वीणाके मधुर स्वर, गायन और मनोहर धर्मकथाओंके श्रवणसे भी ताप कम हो जाता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसके बाद उसमें पांके बराबर लोहभस्म, बंगभस्म, सीसाभस्म, महुवेका सार, नागरमोथा, रेणुका, गूगल, मनसिल और चयका चूर्ण तथा पारसे आधा शुद्ध नागका चूर्ण मिलाकर सबको बछनागके स्वरस या काथसे तेज धूपमें ७ भावना दें । तदनन्तर उसे २ घड़ी तक खरल करनेके बाद त्रिकुटे काथ, धतूरे के रस, त्रिफलाके काथ, अगस्ती ( अगथिया स्वरस, समन्दरफलके काथ, भांग स्वरस या काथ, चीतामूलके काथ और कलिहारीके स्वरसमें ७-७ बार घोटकर उसे उस सबके बराबर विषकी धूप देकर रक्खें । ज्वरके रोगीको ज्वर जानेके बाद भी अच्छी तरह बल आने तक स्त्रीप्रसंगसे बचना चाहिये । | इसे वाया सेंधानमक, गूगल और चंतिके 'चूर्णके साथ तथा कामला पाण्डु और क्षय में पीपल चूर्ण और शहद के साथ सेवन करना चाहिये । यदि सन्निपात में संज्ञानाश और विस्मृति हो ता इसमेंसे ? रत्ती रस चीतामूलके काथ या अदरक के रसके साथ देना चाहिये । | यदि रोगी की बाड़ी बन्द हो तो उसके ताक से जरा एक खुरचकर उस पर यह रस अदरक के रस में मिलाकर मलना चाहिये। इससे उसे होश आ जायगा । यदि उस विधि से भी होश न आवे तो रोगी के मस्तक पर मन्त्रपूत १०० घड़े शीतल जल धार बांधकर छोड़ें। और होश आने पर रोगीको भूख लगे तो उसे दही भात और खांड अथवा जीरका चूर्ण मिलाकर तक दें । प्यासमें मिश्रीका शरबत पिलायें । यह रस सन्निपातको तो नष्ट करता ही है पर साथ हो रोगोचित अनुपान के साथ देनेसे अन्य • समस्त रोगोंको भी नष्ट करता है 1 (४४४२) प्रतापलङ्केश्वररस: (३) ( वृ. यो त । त. १४२; यो. र. र. चं । सृतिका ; यो त । त. ७५ ) एकेन्दुचन्द्रानवाधिदन्ती कलैकभागं क्रमशो विमिश्रम् । मृताभ्रगन्धोपणलोहशङ्ख वन्योत्पलाभस्मविषं च पिष्टम् ॥ प्रभूतिवातेऽनिलदन्तबन्धे सार्द्राम्भसा वल्लममुष्य लिह्यात् । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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