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रसमकरणम् ] तृतीयो भागः।
[५०१] जातीकोपो मुरा पत्रं शटी तालीसकेशरम् । । भाजनेऽच्छलवणोदरे क्षिपेव्योपं चोचं कणामूलं लवङ्गं पिचुसम्मितम् ।। दङ्गुलीत्रितयमानतस्तु तत् । भक्षयेत्पातरुत्थाय गुरुदेव द्विजार्चकः। गोमयेन परिवेष्टय भाजने नानारूपमतीसारं ग्रहणीं सर्वरूपिणीम् ॥
शोषयेत पुटयेत्तृणाग्निना ।। अम्लपित्तं तथा शूलं शूलञ्च परिणामजम् । पूर्णचन्द्र इति कीर्तितो रसो रसायनवरश्वाऽयं वाजीकरण उत्तमः ।।
राजयक्ष्मरवितापनाशनः। शुद्ध हरताल, लोहभस्म और अभ्रकभस्म ५-. पथ्यमत्र कुमुदेश्वरे यथा। ५ तोले, कपूर, शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, जावित्री, तद्वदेव हि विवj वर्जनम् ॥ मुरामांसी, तेजपात, कचूर, तालीसपत्र, केसर, सेठ, अम्लपित्तपरिणामशूलहा मिर्च, पीपल, दालचीनी,पीपलामूल और लौंग११-१। सेवितो मधुकणाज्यमिश्रितः । तोला लेकर प्रथम पारे गन्धकको कजली बनावें । पैत्तिकज्वरविचिकापहा .
और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका अत्यन्त महीन जीरकद्वयगुडूचिकान्वितः॥ चूर्ण मिलाकर खरल करके सुरक्षित रक्खें। शाल्मलीद्वयगुडूचिकाकणैः
इसके सेवनसे अनेक प्रकारके अतिसार, सर्व शुष्कपाण्डुहरणः सितायुतैः । प्रकारकी संग्रहणी, अम्लपित्त, शूल और परिणाम | शाल्मलीद्वयगुइँचिकासिता .. शूल नष्ट होता है। यह रस रसायन और वाजी
वानरीकणपयोविमिश्रितैः ।। करण है।
पुष्टिदृष्टिबलकामवीर्यदो
जायतेऽखिलगदापहारकः ॥ ( मात्रा--३ रत्ती।)
स्वर्णभस्म, शुद्ध पारा, मोतीभस्म, शुद्ध बछनाग (४४३०) पूर्णचन्द्रो रसः (१)
विष और शुद्ध गन्धक समान-भाग लेकर प्रथम पारे (र. चं.; र. प्र. सु. । राजय.१ ) गन्धक की कजली बनावें और फिर उसमें अन्य हेमभस्मसमतो रसं लिम
“ओषधियां मिलाकर सबको १-१ दिन चीतेके मौक्तिकं तु विपगन्धकं कुरु । काथ और अदरक के रसमें घोटकर गोला बनावें चित्रकाकरसेन पेषये
और उसे सुखाकर चार तह किये हुवे कपड़ेमें स्थापयेच्च परिवेष्टयन्मृदा ॥
लपेटकर उस पर मिट्टीका लेप कर दें और उसके
ऊपर ३ अंगुल मोटा गायके गोबरका लेप करके १ रस चण्डांशुम यह रस राजयक्ष्मा प्रकरणमें २
| सुखाकर उसे एक हाण्डीमें नमकके बीचमें रख दें स्थानोंमें लिखा है। उनमेंसे एक पाठ ऊपर दिया गया है दूसरे पाठमें मोती और विषके स्थानमें नागभस्म
| तथा उसका मुंह बन्द करके सुखा लें । तदनन्तर लिखी है तथा भावना द्रव्यांमे अदकका अभाव है।
उसे नृणाग्निमें १ दिन पकावें और फिर उसके
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