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रसप्रकरणम् ]
बहेड़ा और आमलेका चूर्ण १-१ भाग मिलाकर सबको १ रोज़ बकरीके दूधमें घोटकर (१-१ माकी) गोलियां बना लें ।
तृतीयो भागः ।
इन्हें अद्रक रस में मिलाकर चाटकर ऊपर से थोड़ा ठण्डा पानी पीनेसे खांसी और स्वास नष्ट होते और विशेषतः अग्निकी वृद्धि होती है । इसे निरन्तर अधिक समय तक सेवन करनेसे वृद्ध पुरुष भी तरुणके समान शक्तिमान् हो जाता है । (४४२४) पुष्पधन्वारस: (१) ( र. र. स. अ. २७; र. चं. । वाजीकरणा . ) रम्भादे मार्क पिष्टि
पक्त्वा यन्त्रे भूधरे तां पचेत । गन्धं दत्त्वा षड्गुणार्द्धं क्रमेण
पश्चात्कान्तं तेन तुल्यं क्रमेण ॥ दत्त्वा खल्वे शाल्मलीयष्टितोयैः
पक्षैकं तन्मर्दयेनागवल्ल्याः । नीरैर्यामं पुष्पधन्वा रसः स्या
द्वलं दद्यादस्य पूर्वोक्तयुक्त्या || पुष्टिं वीर्य दीपनं सोऽत्र दद्या-
न्याद्रोगान् रोगयोग्याऽनुपानैः ॥ शुद्ध स्वर्ण, शुद्ध चांदी और शुद्ध ताम्रके अत्यन्त बारीक पत्र या चूर्ण समान भाग लेकर सबको एकत्र घोटकर केलेकी जड़में रखकर उसपर कपड़मिट्टी करके उसे भूधरयन्त्र में ( १ रोज़ ) पकावें । तदनन्तर उसमें उसके बराबर शुद्ध गन्धक मिलाकर पुनः इसी प्रकार पकावें । इस प्रकार ३ बार बराबर बराबर गन्धक मिलाकर पकायें और जब ३ गुना गन्धक जारण
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कर चुके तो उसमें उसके बराबर कान्तलोह - भस्म मिलाकर उसे सेंभलकी मूसली और मुलैठीके काथ में १५ दिन खरल करें। तदनन्तर १ पहर पान के रस में घोटकर ३ - ३ रत्तीकी गोलियां बना लें ।
इसे घृत मधु और मिश्री युक्त दूधके साथ सेवन करनेसे बल वीर्य और अग्निकी वृद्धि होती है तथा रोगोचित अनुपान के साथ देनेसे अनेक रोग नष्ट होते हैं।
(४४२५) पुष्पधन्वारस: (२) (भै. र. यो. र. । रसायनवाजी.; आ. वे. वि. । अ. ६९; वृ. यो. त. । त. १४७; यो त । त. ८० ) हरजभुजगलौहञ्चाभ्रकं वङ्गभस्म,
कनकविजययष्टयः शाल्मलीनागवल्ल्यौ । घृतमधुसितदुग्धं पुष्पधन्वा रसेन्द्रो,
रमयति शतरामा दीर्घमायुर्बलश्च ॥ पारदभस्म, सीसाभस्म, लोह भस्म, अभ्रकभस्म, बंगभस्म, धतूरे के बीज (शुद्ध), विजयसार, मुलैठी, भलकी मूसली और पान समानभाग लेकर सबका यथाविधि चूर्ण बनावें ।
इसे घृत मधु और मिश्री युक्त दूधके साथ सेवन करने से बल और आयुको वृद्धि होती तथा सैकड़ों स्त्रियोंसे रमण करनेकी शक्ति प्राप्त होती है। ( मात्रा - ३ रत्ती । )
१ इस प्रयोगमें योगतरंगिणीमें पारद तथा बंग नहीं हैं । वृहद्योगतरंगिणी में बंगकी जगह बीता है और धतूरे आदि ५ पदार्थोंसे भावना देनेके लिये लिखा है । योगरत्नाकरमें बंग नहीं है तथा इसका नाम ' लघुपुष्पधन्वा ' लिखा है ।
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