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रसमकरणम् ]
तृतीयो भागः।
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___काकतुण्डी-रुक्ष, तिक्त, कफ पित्त तथा | इनके सेवनसे कोष्ठ और शाखाश्रित पित्त, यकृत्प्लोह रोग नाशक और योगवाही है। शूल, अम्लपित्त, पाण्डु, हलीमक, अर्श, भ्रान्ति ___जो पीतल वजनमें भारी, मृदु और रंगमें | और वमन का शीघ्र ही नाश हो जाता है। पीली हो, चोट सहन कर सके, स्निग्ध हो और । यदि इस योगमें स्वर्णमाक्षिकके स्थानमें जो स्पर्श में चिकनी हो वह उत्तम मानी जाती है। स्वर्णभस्म डाली जाय तो इसका नाम " महा
जो पीतल रंगमें भूरी पीलो, खरदरी, रूक्ष, | पित्तान्तकरस" हो जाता है।। कमज़ोर, पीटनेसे टूट जाने वाली, दुर्गन्धियुक्त | (४४०८) पित्तान्तकरसः (२) और हल्की होती है वह अच्छी नहीं मानी जाती। (र. चं. । पित्तरो.; र. र. स.; अ. १८) ऐसी पीतल रसोंमें प्रयुक्त न करनी चाहिये ।।
मृतसूताभ्रमुण्डाकैतीक्ष्णमाक्षिकतालकम् । संभालके रसमें हल्दीका चूर्ण मिलाकर उसमें
गन्धकं मर्दयेत्तुल्यं यष्टिद्राक्षाऽमृताद्वैः॥ पीतलके पत्रोंको तपा तपाकर ५ बार बुझानेसे
जलमण्डपजैः पाठावैः क्षीरविदारिजैः । वह शुद्ध हो जाती है।
मर्दयेञ्च दिनं खल्वे सिताक्षौद्रयुता वटी॥ (४४०७) पित्तान्तकरसः (१)
| बल्लमात्रा निहन्त्याशु पित्तं पित्तज्वरं क्षयम् । (र. सा. सं.; र. चं.; र. रा. सु. । पित्तरो.)
| दाहतृष्णाश्रमांश्छोषं हन्ति पित्तान्तको रसः ॥ जातीकोषफले मांसी कुष्ठं तालीसपत्रकम् । । | सिताक्षीरं पिबेञ्चानु यष्टिकाथं सिताऽन्वितम् । माक्षिकं मृतलोहं च ह्यभ्रं दिव्यं समांशकम् ॥ | पिबेद्वा पित्तशान्त्यर्थ शीततोयेन वालकम् ॥ सर्वतुल्यं मृतं तारं समं निष्पिष्य वारिणा ॥ पारदभस्म, अभ्रकभस्म, मुण्डलोहभस्म, द्विगुञ्जाभा वटी कार्या पित्तरोगविनाशिनी ॥ ताम्रभस्म, तीक्ष्णलोह-भस्म, स्वर्णमाक्षिकभस्म, कोष्ठाश्रितं च यत्पितं शाखाश्रितमथापि वा। हरताल-भस्म और शुद्ध गन्धक समान भाग लेकर शुलं चैवाम्लपित्तं च पाण्डुरोगं हलीमकम् ॥ सबको एकत्र घोटकर मुलैठी, दाख (मुनक्का), दुर्नामभ्रान्ति वान्तिं च क्षिप्रमेव विनाशयेत् । गिलोय, शैवाल ( सिरवाल ), पाठा और क्षीररसः पित्तान्तको ह्येष काशिराजेन भाषितः ॥ बिदारी के स्वरस की १-१ भावना देकर ३-३ यद्यत्र माक्षिकं त्यक्त्वा सुवर्णमपि दीयते । । रत्तीकी गोलियां बना लें। महापित्तान्तको नाम सर्वपित्तविनाशनः॥ इनमेंसे १-१ गोली मिश्री और शहदके ___ जायफल, जावित्री, जटामांसी, कूठ, तालीस | साथ खिलानेसे पित्त, पित्तज्दर, क्षय, दाह, तृषा, पत्र, स्वर्णमाक्षिकभस्म, लोहभस्म और अभ्रकभस्म, | थकान और शोष नष्ट होता है।। १-१ भाग तथा चांदी भस्म ८ भाग लेकर अनुपान-गोली खानेके बाद मिसरी मिलाकर सबको एकत्र मिलाकर पानीके साथ घोटकर २-२ । दूध या मुलैठीका काथ अथवा शीतल जलमें पीसरत्तीकी गोलियां बनावें।
कर सुगन्धबाला पीना चाहिये ।
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