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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] तृतीयो भागः। [४७१] फेनिलफलाहिदींकन्दरसं खादतोऽनुदिनम् ।। शहदमें मिलाकर उसके साथ; फेनिलमूलोद्वर्तनमाचरतोपि च कुतः कुष्ठम् ॥ खांसीमें-पीपलके चूर्ण और कटेलीके काथ चित्रकवानरिवायसितुण्डी के साथ; बाकुचिकाद्विगुणाः परिपीताः। क्षयों-बकरीके दूधसे सिद्ध घृतमें पीपलका मूत्रयुता मृतस्तसमेता | चूर्ण मिलाकर उसके साथ अथवा त्रिफला, त्रिकुटा, स्तक्रभुनः शमयन्ति किलासम् ॥ शुद्ध गन्धक और गुड़के समान भाग-मिश्रित सनिम्बपल्लवक्षौद्रः कृमीन्हन्ति मृतो रसः। चूर्णके साथ; पीतो लशुनसिद्धेन तैलेनानिलजान्गदान् ॥ हिचकीमें-सञ्चल ( काला नमक ), विजौर विधरण्डभृतक्षीरसहितो गृध्रसीं जयेत् ।। | का रस और शहदके साथ; गुडाभयागुडूच्यम्बुयुक्तः पवनशोणितम् ॥ त्रिकटुत्रिफलावेल्लैः समांशो गुग्गुलुर्जयेत् । छर्दि और दाहमें-मिश्री, शहद और धान की खीलोंके साथ अथवा मिश्रीके शर्बत कौर मूंग वातारितैलसंयुक्तः स्थौल्यं भस्मरसान्वितः ॥ मधुदकाभ्यां युक्तो वा काश्य तु शर्करान्वितः।। के यूषक साथ; हिसौवर्चलव्योषमूत्रसिद्धन सपिंपा ॥ अर्शमें-पुटपाकविधिसे पक्क सूरण (जिमिरसो हन्यादपस्मारमुन्मादं च तथाअनात् ॥ | कन्द), और सेंधा नमकके चूर्णको तेल में मिलाकर मधूककुनटीतायपारावतमलैयुतः ॥ उसके साथ; धान्याम्लपिष्टाष्टम पिप्पलीका अतिसारमें-खिरनीकी छाल और उसके कार्पासबीजान्करमर्दनेन। पत्तोंको तक्रके पानीमें पकाकर उसके साथ; आदाय तैलं मृतसूतयुक्त विसूचिकामें-हींग और पीपल के चूर्ण के मक्ष्णि प्रयुञ्जीत विशीर्णरोम्णि ॥ साथ; पारद भस्म जिस रोगको नष्ट करने वाले अजीर्णमें-कानी या अरण्डमूलके काथ किसी योगके साथ खिलाई जाती है उसीको नष्ट | अथवा “ हरीतकीअवलेह "के साथ; करती है। मूत्रकृच्छ्रमें-बेलगिरी, ककड़ीका गूदा, मसूपारद भस्मः रका काथ, दूध, दुद्धी, तालमखानेका चूर्ण और ज्वरमें मोथे और पित्तपापड़ेके काथके साथः | शहद को एकत्र मिलाकर उस के साथ खिलानी त्रिदोष ज्वरमें-पीपलके चूर्ण और दशमूल चाहिये । के काथके साथ; प्रमेहमें-पारदभस्म, शिलाजीत, पीपल, मरक्तपित्तमें-हर्र, बासा और पीपलके चूर्णको । सूर भस्म, त्रिफला, कटेली के बीज, स्वर्णमाक्षिक For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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