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चूर्णमकरणम् ]
चूर्णको शहद तथा घीके साथ चाटने से श्वास, खांसी और तमक श्वास शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। (२९८७) द्राक्षादिचूर्णम् (८) (वं. से. 1 बाल . )
तृतीयो मामः ।
द्राक्षादुरालभाचैव पिप्पल्योऽथ हरीतकी । एतानि कृत्वा चूर्णानि योजयेन्मधुसर्पिषा ॥ त्रिरात्रं पञ्चरात्रं वा चूर्णमेतनिषेवितम् । कासः श्वासश्व बालानां तमकश्वोपशाम्यति ॥
विदारिकाचन्दनवासकं च । तापटोले किरातकानां
दाख ( मुनक्का धमासा, पीपल और हर्र - के चूर्णको शहद और घीके साथ मिलाकर तीन दिन या ५ दिन तक चटानेसे बालकांकी खांसी, श्वास और विशेषतः तमक श्वास नष्ट हो जाता है। (२९८८) द्राक्षादिचूर्णम् (९)
( हा. सं. । स्था. ३ अ. ६ ) द्राक्षाभयातिक्तकरोहिणी च
कृष्ण बलामूसलिका विषाणाम् ॥ लालपद्मकं च
योज्या च भृङ्गी धनिका समझा । चूर्ण सखर्जूर सितासमेतं
घृतेन तं चापलप्रमाणम् ॥ भक्षेत् प्रभाते मनुजः पयश्च
निःक्काथ्य पान सङ्घवं विधेयम् । करोति तीव्रासिमं प्रकृष्टं
कृशस्य पुष्टिं तनुतेऽपि नूनम् ॥ क्लमभ्रमशोषविनाशनं स्यात् तृष्णाविलौल्यशमनं करोति ।
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सरक्तपितं क्षयपाण्डुरोगं हलीम काममाशु नश्येत् ॥ मुनक्का ( दाख), हर्र, कुटकी, बिदारीकन्द, सफेद चन्दन, बासा, नागरमोथा, पटोलपत्र, चिरायता, पीपल, खरैटी, मूसली, अतीस, इलायची, लौंग, तेजपात, पद्माक, काकड़ासिंगी, धनिया, स्वजूर और मिश्री । सब चीजें समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे २|| तोलेकी मात्रानुसार घीमें मिलाकर प्रातःकाल पके हुवे दूधमें घी डालकर उसके साथ सेवन करनेसे अग्नि तीव्र होती, कृश शरीर पुष्ट होता तथा क्लान्ति, भ्रम, शोष, तृष्णा, रक्तपित्त, क्षय, पाण्डु, हलीमक और कामला आदि रोग शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं ।
( व्यवहारिक मात्रा ६ माशे । ) (२९८९) द्राक्षादिचूर्णम् (१०)
( ग. नि. । चूर्णा. यो. र. ) द्राक्षा लाजसितोत्पलं समधुकं खर्जूरगोपी
लुगा । हीरा मलकान्दचन्दननत कक्कोलजातीफलम् ॥ चातुर्जातकणं सधान्यकमिदं चूर्ण समां शर्कराम् । दवा शीतजलेन भक्षितमिदं पित्तं सदाई जयेत् ॥ मूर्च्छा छर्दिमरोचकं च प्रदरं पाण्डुभ्रमं
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कामलाम् । यक्ष्माणं समदात्ययं सतमकं तृष्णास्रपितं तथा । दाख (मुनक्का ), खस, सफेद कमल, मुलैठी, खजूर, अनन्त मूल, बंसलोचन, सुगन्धवाला, आमला, मोथा, सफेद चन्दन, तगर, कंक्रोल,