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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [३४] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [दफारादि - मुनक्का (दाख), कुटकी, सेोठ, मिर्च, मुनक्का ( दाख), धमासा, हरं, और चिकनी पीपल; दारुहल्दीकी छाल, हर्र, बहेडा, आमला, सुपारी समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। इसे नागरमोथा, पाठा, रसौत, दूब घास, और चव । | गुड़के साथ मिलाकर सेवन करनेसे वातज ज्वर सब चीजें समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। | नष्ट होता है। इसे शहदमें मिलाकर मुखमें रखनेसे गलेके ( मात्रा २-३ माशा । गुड़ सबकें बराबर रोग नष्ट होते हैं। मिलाना चाहिये) (२९८२) द्राक्षादिचूर्णम् (३) (वै. र. । रक्तपि.) (२९८४) द्राक्षादिचूर्णम् (५) मृदीका चन्दनं लोधं प्रियकुश्चेति चूर्णयेत् । | (वृ. नि. र. । क्षयकर्म.) चूर्णमेप्तत्पिबेत्क्षौद्रवासारससमन्वितम् ॥ द्राक्षाखर्जुरसपिभिः पिप्पल्या च सह स्मृतम् । नासिकामुखपायुभ्यो योनिमेदादिवेगिनाम् । | सक्षौद्रं ज्वरकासनं श्वयथौ च प्रयोजयेत् । रक्तं पित्तं स्रबद्धन्ति सिद्ध एष प्रयोगराय॥ ___दाख ( मुनक्का ), खजूर और पीपलके चूर्णको घी और शहदके साथ मिलाकर खानेसे रक्तातिसारे प्रदरे रक्ताशासि चिकित्सितम् ।। ज्वर, खांसी और शोथ नष्ट होता है। अधोगे रक्तपित्ते च कार्यमुक्तं भिषग्वरैः ॥ बोलबद्धपर्पटीरसश्चात्रदेयामालिनीवसन्तश्च ।। | (२९८५) द्राक्षादिचूर्णम् (६) दाख ( मुनक्का ), सफेद चन्दन, लोध और (. मा.; ग. नि.; यो. र.; घृ. नि. र.; फूलप्रियङ्गु । सब चीजें समान भाग लेकर चूर्ण वं. से. । कास.) बनावें । द्राक्षामधुक खजूरपिप्पली मरिचान्वितम् । इसे शहद और बासेके रसमें मिलाकर पि- पित्तकासहरं घेतल्लिखान्माक्षिकसर्पिषा ॥ 'लानेसे नाक, मुंह, गुदा, योनि और लिङ्ग आदि दाख (मुनक्का ), मुलैठी, खजूर, पीपल और से होने वाला रक्तस्राव ( रक्तपित्त ), रक्तातिसार, | काली मिरचके चूर्णको शहद और घीके साथ रक्तप्रदर, और रक्ताका रक्त बन्द होता है । यह / चाटनेसे पित्तज खांसी नष्ट होती है। एक सिद्ध प्रयोग है। अधोगत रक्तपित्तमें बोलबद्ध पर्पटी रस तथा (२९८६) द्राक्षादिचूर्णम् (७) । मालिनी वसन्तरस भी लाभ पहुंचाता है । (. मा.; ग. नि.; भा. प्र. । म. ख. बालदो.; यो. र. । कास. ) | (२९८३) द्राक्षादिचूर्णम् (४) (वृ. नि. र. । ज्वर.) द्राक्षावासा भयाकृष्णायूण क्षौद्रेण सर्पिषा । द्राक्षा दुरालमा पथ्या चिक्कणी समभागत। ली कार्स निहन्त्याशु वासश्च तमकं तथा ॥ एता गुडान्विता नूनं नाशयन्त्यनिलज्वरम् । दाख ( मुनक्का ), बासा, हर, और पीपलके मामलकेति पाठान्तरम् । २ विश्वति पाठान्तरम् For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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