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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] तृतीयो भागः। [४३३] - - - - फिर उसे सुखाकर आतशी शीशीमें भरकर ४ ! आमलेका चूर्ण १--१ भाग तथा खांड सबके पहर तक बालुकायन्त्र में पकावें । | बराबर लेकर चूर्ण बनावें ! तदनन्तर शीशीके स्वांग शीतल हो जाने इसे घी और तैलके साथ सेवन करनेसे वृद्धापर उसमें से रसको निकाल कर उसे गिलोय, वस्था नहीं आती। सफेदकमल का कन्द, लालकमलका कन्द, मुनक्का (४३०५) पथ्यादिचूर्णम् (२) और मुलैठीके काथकी १-१ भावना देकर सुरक्षित ( भा. प्र. । वातव्या.) रक्खें । पथ्याविभीतधात्रीणां चूर्ण चूर्ण मृतायसः । इसे शहद और मिश्री के साथ सेवन करने से मधुना सह संलीढं बहुमूत्रणशान्तिकृत् ॥ कामलाका नाश होता है। हरं, बहेड़ा और आमलेका चूर्ण १-१ भाग (४३०३) पतङ्गयोगः तथा लोहभस्म ३ भाग मिलाकर शहदके साथ (३. यो. त. । त. १४७) सेवन करने से बहुमूत्र रोग नष्ट हो जाता है। टङ्क पतङ्गचूर्णस्य जातीपत्रस्य टङ्ककम् । । (४३०६) पथ्यादियोगः अहिफेनस्य टई हि दरदं टङ्कयुग्मकम् ॥ (ग. नि. । रसाय ) अद्वै वाऽप्यथवा सर्व चूर्ण खादेद्यथाबलम् । पथ्याचित्रकयात्रीणां चूर्ण लोहरजोन्वितम् । पिबेदनु पयः स्वल्पं वीर्यस्तम्भं करोति हि ॥ साता" | पलिहयान्मधुसर्पियो जरारोगनिषूदनम् ॥ महायोगोऽयमुदितः शुक्रस्तम्भकरः परः॥ हरं, चीता और आमलेका चूर्ण १-१ भाग पतङ्गका चूर्ण, जावित्री और अफीम १-१ | तथा लोहभस्म ३ भाग लेकर सबको एकत्र मिलाटंक तथा शुद्ध शिंगरफ २ टंक लेकर सबको कर शहद और धीके साथ सेवन करनेसे बुढ़ापा घोटकर चूर्ण बनावें। दूर हो जाता है। इसे यथोचित मात्रानुसार थोड़े दूधके साथ (४३०७) पथ्यादिलोहम्। सेवन करने से वीर्यस्तम्भन होता है । (कृ. यो. त. । त. ९५; वृ. नि. र.; र. चि. म.; शुक्रस्तम्भनके लिये यह एक महान योग है। र. र.; च. द.; भा. प्र.; यो. र.; वं. से.; (४३०४) पथ्यादिचूर्णम् (१) ___. मा. । परिणा. शूल.; ग. नि. । परिशि.) (ग. नि. । रसाय.) पथ्यालोहरजः शुण्ठी तच्चूर्ण मधुसर्पिपा । पथ्याकृष्णाविडङ्गायोधात्रीचूर्ण सशर्करम् । । सर्पिस्तैलयुतं खादञ्जरया नाभिभूयते ॥ १-भाव प्रकाश में इस योगमें पीपल भी हर, पीपल, बायबिडंग, लोहभस्म और | लिखी है । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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