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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] तृतीयो भागः। [४३१] शुद्ध पारा, कान्तलोहभस्म, ताम्रभस्म, अभ्रक- (४२९९) पञ्चामृतलोहगुग्गुलु: भस्म और स्वर्णमाक्षिकमस्म १-१ पल (५-५ (भै. र. । परि.) तोले ) तथा शुद्ध गन्धक ५ पल लेकर प्रथम पारे रसगन्धकताराऽभ्रमाक्षिकाणां पलं पलम् । गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य | लोहस्य द्विपलश्चापि गुग्गुलोः पलसप्तकम् ।। औषधे मिलाकर उसे ३-३ दिन अद्रकके रस, मर्दयेदायसे पात्रे दण्डेनाऽप्यायसेन च । दशमूलके काथ और चीतेके काथमें घोटकर धूप कटुतैलसमायोगाधामद्वयमतन्द्रितः ॥ में सुखाकर पुनः घोटें जब महीन चूर्ण हो जाय माषमात्र योगेण गदा मस्तिष्कसम्भवाः । तो उसमें सांठ, मिर्च, पीपल, हरे, बहेड़ा, आमला, | स्नायुजा वातजाश्चापि विनश्यन्ति न संशयः।। दालचीनी, इलायची, तेजपात, नागरमोथा, कुचला, | यं पञ्चामृतलौहाख्यो गुग्गुलुर्न हरेदगदम् । तुम्बरु, रेणुका, भरंगी, चिरायता, कुटकी, जायफल नासौ सञ्जायते देहे मनुजानां कदाचन ॥ और कसेरुका आधा आधा पल (२।।-२॥ तोले) शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, चांदी भस्म, अभ्रक चूर्ण मिलाकर उसे १-१ दिन क्रमशः मकोय, | भस्म और सोनामक्खी भस्म ५-५ तोले, लोह संभाल, पुनर्नवा (निसखपरा) और मुण्डीके काथ भस्म १० तोले और शुद्ध गूगल ३५ तोले तथा अदरकके रसकी एवं गिलोय, और सहजने लेकर सबको लोहेके खरलमें लोहेकी मूसलीसे की जड़की छालके काथ तथा अदरकके रसकी ज़रा ज़रासा सरसेका तैल लगा लगाकर २ पहर १-१ भावना देकर बेरकी गुठलीके बराबर तक घोटें और फिर १-१ माशे की गोलियां बनागोलियां बना लें। कर सुरक्षित रक्खें। इनमेंसे १-१ गोली २० काली मिर्चीके इनके सेवनसे मस्तिष्क रोग, स्नायुरोग और चूर्णके साथ मिलाकर रोगोचित अनुपानके साथ वातव्याधि आदि समस्त रोग नष्ट होते हैं। (४३००) पञ्चामृतलौहमण्डूरम् देनेसे समस्त रोग नष्ट होते हैं। (पञ्चामृतमण्डूरम् ) यह रस सर्व प्रकारके ज्वर, पाण्डु, अर्स, (भै. र.; र. रा. सु.; र. चं. 1 पाण्डु.; भै. र. । अग्निमांच, संग्रहणी, समस्त कफज रोग, वात ग्रहणी.) व्याधि, गुल्म, अरुचि, पित्तज रोग, स्रोतोजविकार, लौह तानं गन्धमभ्रं पारदश्च समांशकम् । खांसी तथा श्वासादिको नष्ट करता है। त्रिकटु त्रिफला मुस्तं विडङ्ग चित्रकं कणा ॥ | किरात देवकाष्ठश्च हरिद्राद्वयपुष्करम् । यह रस दूध पीनेवाले बच्चों के लिये भी | यमानी जीरकं युग्मं शटीधान्यकचव्यकम् ॥ हितकर है। प्रत्येकं लौहभागच श्लक्ष्णचूर्णन्तु कारयेत् । पथ्य-तक भात। सर्वचूर्णस्य चाीशं मुरदं लौहकिट्टकम् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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