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[४१४] भारत-भैषज्य रत्नाकरः।
[पकारादि एतेषां पलिकैर्भागैर्घण्टकर्णकमानकम् ।
पञ्चाननवटी (३) ग्रन्थिकं चित्रकश्चैव कुलिशानां पलार्धकम् ॥ (भै. र.; र. चं. । अर्श.; र. सा. स. । अर्श.) आईकस्वरसैः पिष्ट्वा गुटिकां माषकोन्मिताम् ।
नित्योदित रस देखिये ।
इसमें और उसमें केवल यही अन्तर है कि पञ्चाननवटी ख्याता सर्वरोगविनाशिनी ॥
उसमें विष पड़ता है और इसमें नहीं पड़ता। अम्लपित्तमहाव्याधिनाशिनी च रसायनी । (१२७२) पश्चाननावटी महाऽग्निकारिका चैषा परिणामव्यथापहा ॥ (भै. र. र. सा. सं., र. रा. सुं.; र. र. । पाण्डु.) शोथपाण्डामयानाहप्लीगुल्मोदरापहा ॥ शुद्धमूतं समं गन्धं मृतताम्राभ्रगुग्गुलुः । शुद्ध पारा २॥ तोले और शुद्ध गन्धक २॥
जैपालबीजतुल्यञ्च घृतेन गुटकीकृतम् ।। तोले लेकर दोनों की कजली बनावें और उसे भक्षयेदर्धगुञ्जाभं शोथपाण्डुपशान्तये । ( नीबू के रसमें घोटकर ) ५ तोले ताम्रके बारीक
| 'पश्चानना' वटी ख्याता पाण्डुरोगकुलान्तिका।। पत्रों पर लेप कर दें और उन्हें सम्पुट में पञ्चलवण ___शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, ताम्रभस्म, अभ्रक के बीच में रखकर बन्द कर के गजपुट में फूंक दें। भस्म, शुद्ध गूगल और शुद्ध जमालगोटा समान जब स्वांग शीतल हो जाय तो उसमें से ताम्र | भाग लेकर प्रथम पारे गन्धक की कजली बनावें भस्म को निकालकर पीस लें । तत्पश्चात् ५--५ | फिर उसमें अन्य ओषधियां मिलाकर सब को घी तोले शुद्ध पारद और गन्धक की कजली बनाकर | के साथ घोटकर आधी आधी रत्ती की गोलियां उसमें उपरोक्त ताम्र भस्म तथा लोह भस्म और बनावें। अभ्रक भस्म ५-५ तोले एवं अजवायन, सौंफ,
इन के सेवन से शोथ और पाण्डु रोग नष्ट सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेडा, आमला, निसोत, | होता है। चव, दन्तीमूल, चिरचिटा तथा सफेद और काले । (४२७३) पश्चाननो रसः (१) जीर का चूर्ण ५-५ तोले; घण्टकर्ण, मानकन्द, (र. र. स. । अ. १९) पीपलामूल, चीता और हाडसंघार का चूर्ण २॥- |
मृतं कान्तं सुवर्ण च शुल्बताराभ्रभस्मकम् । २॥ तोले मिलाकर सब को अद्रक के रसमें घोट
पृथगक्षमितं सर्वं पटचूर्णकृतं मृदु ॥ कर १-१ माशे की गोलियां बनावें ।
रसगन्धककज्जल्या तुल्यया सह मर्दितम् ।
सार्धद्विपलमानेन ताप्य चूर्णेन मर्दितम् ॥ इन के सेवनसे अम्लपित्त, परिणाम शूल,
द्विपलं मूषिकामध्ये विनिक्षिप्यालचूर्णकम् । शोथ, पाण्डु, अफारा, तिल्ली, गुल्म, और उदररोग
ततस्तु कज्जली क्षिप्त्वा मनोहां तावतीं क्षिपेत्।। नष्ट होते तथा अग्नि प्रदीप्त होती है। | ततो निरुध्य यत्नेन परिशोष्य पुटेनिशि ।।
यह रसायन ( जराव्याधिनाशक) औषध है। , पाण्डुसूदन रसमें और इसमें नाम मात्रका ही अन्तर है।
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