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रसमकरणम्]
हतीयो भागः।
[४१३]
इसमें से प्रति दिन १ माशा चूर्ण खाकर । पथ्य-उर्द, ईख, पिट्टीके पदार्थ, भारी अन्न ऊपरसे आमले और मिश्रीका चूर्ण ( दूधके साथ) और गाय का दूध । खानेसे पित्तज द्रोग नष्ट होता है।
(४२७०) पचाननवटी (१) (व्यवहारिक मात्रा-२ रत्ती ।)
(वृ. यो. स. । त. ९३) (४२६९) पश्चात्मको रसः
प्रत्येकं पिचुरंशजं च तपनीपाटाणं सैन्धवम् । (र. सा. सं । शूला. र. रा. सु. । शूला.)
तुत्य तीक्ष्णहलाहलावथ पले वैश्वानरश्रेष्ठयोः । सतसूताभ्रक चाम्लवेतसं साम्रगन्धकम् । विर्ष फलत्रयाच्चूर्ण तुल्यं मर्थे दिनावधि ॥
शुदो गुग्गुलरञ्जलिं घृतयुतामेषा द्विभाषावटी। जयन्ती मुण्डिरी वासा वृहसी च गुइचिका ।
सश्रेष्ठाकथनामवातपवनातङ्केभपश्चानना ॥ महाराष्ट्री जम्नु रसैस्तथा नीलोत्पलस्य च ॥ सोनामक्खी भस्म, सुहागा, सेंधा नमक, शुद्ध पतिद्रावैदिन भान्यं ततः संशोष्य यत्नतः। नीहाथोथा, तीक्ष्णलोह भस्म और शुद्ध मीठा भदौवं पक्षलवणं दत्त्वाकरसेन च ॥ तेलिया १५-१। तोला तथा चीता और त्रिफला दिन पेष्यं ततः कुर्यादटिकां चणसभिभाम् । । (हर्र, बहेड़ा, आमला ) ५-५ तोले और शुद्ध मातमध्याइने रात्रौ च भक्षयेटिका त्रयम् ॥ | गूगल २० तोले लेकर, कूटने योग्य चीजों को मापेक्षुपिष्टगुर्वषं गोपयश्च हितं तथा। कूट छानकर सब को एकत्र मिलाकर पीके साथ घोट सेवेत वावशूलाश्चिायं पश्चात्मकः स्मृतः॥ | कर २-२ माशे की गोलियां बनावें ।
पारद भस्म, अभ्रक भस्म, अमलबेत, ताम्र इन्हें त्रिफला के काथके साथ सेवन करनेसे भस्म, शुद्ध गन्धक, शुद्ध बछनाग तथा हरे, बहेड़ा | आमवात और वातव्याधि नष्ट होती है। और मामले का चूर्ण समान-भाग लेकर सब को एकत्र मिलाकर एक दिन खरल करें। फिर
(४२७१) पश्चाननवटी (२) उसे जयन्ती, गोरखमुण्डी, बासा, कटेली, गिलोय, (भै. र.; र. र. । अम्लपित्ता.) जलपीपल, जामनकी छाल और नीलोत्पलमें से | शुद्धं सूतं पलार्धश्च तत्समं शुद्धगन्धकम् । जिन के स्वरस मिल सकें उनके स्वरस के और तयोः समं ताम्रपत्रं लिप्त्वा मृषान्तरे क्षिपेत् ॥ शेष चीज़ों के काथ के साथ १-१ दिन घोटकर | आच्छाध पञ्चलवणेलिप्त्वा गजपुटे पचेत् । छाया में सुखावें । तत्पश्चात् उसमें उससे आधा सिद्धं तानं समादाय पलमेकं विमर्दयेत् ॥ पश्चलवण का चूर्ण मिलाकर १ दिन अद्रक पारदस्य पलञ्चैव गन्धकस्य पलन्तथा। के रस में घोटकर चनेके समान गोलियां बना लें। पुटदग्धस्य लोहस्य गगनस्य पलंपलम् ।।
इनमें से ३-३ गोली प्रातः, दोपहर भार | यमानी शतपुष्पा च त्रिकटु त्रिफलापि च । सायंकालके समय खानेसे वातज शूल नष्ट होता है। त्रिता चविका दन्ती शिखरी जीरकद्वयम् ॥
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