SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 402
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [ ४०७] भावयेदभृङ्गराजेन पुनः शुष्काणि कारयेत् ।। यह चूर्ण रसायन (जराव्याधिनाशक ) है। निम्बार्द्धचूर्णमेतेपामेकीकृत्य निधापयेत् ॥ नोट-कुछ ग्रन्थोंमें पञ्चनिम्ब चूर्णके समान भाग विडालपदमात्रन्तु सर्पिषा पयसापि वा।। | चित्रकादि का चूर्ण मिलाने और उस के पश्चात् खैरसार, प्रातः प्रातनिषेवेत खदिरासनवारिणा ।। असन और भंगरेके रसकी भावना देने का लिया है: अकेले पञ्चनिम्ब चूर्ण को भावना देना नहीं लिखा । परिहारो न चात्रास्ति पञ्चनिम्बेऽवतिष्ठति । मासमात्रप्रयोगेण कुष्ठं हन्ति रसायनम् ।। (१२६०) पञ्चनिम्यादिचूर्णम् २ (२) त्वग्दोपं नीलिकाव्यङ्गं तथैव तिलकालकान् । (भै. र.; वृं. मा.; च. द.; भा. प्र.; ग. नि. । अष्टादशविधं कुष्ठं सप्त चैव महाक्षयान् ॥ कुष्ठा.) सर्वव्याधिविनिर्मुक्तो जीवेद्वर्षशतं सुखी ॥ | पुष्पकाले च पुष्पाणि फलकाले फलानि च । नीमका पञ्चाङ्ग (फल, पुष्प, छाल, पत्र और सञ्चूये पिचुमन्दस्य त्वङ्मूलानि दलानि च ॥ मूल) समान-भाग लेकर सब का कपड़छन चूर्ण द्विरंशानि समाहृत्य भागिकानि प्रकल्पयेत् । करके उसे खैरसार और असन की छाल के अष्टा त्रिफला त्र्यूषणं ब्राह्मी श्वदंष्ट्रारुष्कराग्निकाः ॥ वशेष ( चौगुने पानी में पकाकर आठवां भाग शेष विडङ्गसारो वाराही लौहचूर्णो स्मृताः समाः। रहे हुवे ) कार्की १-१ भावना दें तत्पश्चात् हरिद्राद्वयावल्गुजव्याधिघाताः सशर्कराः ॥ उस में निम्न लिखित चूर्ण मिलावें । कुष्ठेन्द्रयवपाठाश्च कृत्वा चूर्ण सुसंयुतम् । ___ चीता, बायबिडंग, अमलतास, खांड, शुद्ध खदिरासननिम्बानां घनकाथेन भावयेत् ॥ भिलावा, हर, सेांठ, आमला, गोखरु, पंवाड़के बीज, सप्तधा पश्चनिम्बञ्च माकेवस्वरसेन च । बाबची, पीपल, काली मिर्च, हल्दा और लोह भस्म । स्निग्धशुद्धतनुर्धीमान् योजयेच्च शुभे दिने । प्रत्येक का समान-भाग चूर्ण लेकर सब को एकत्र मधुना तिक्तहविपा खदिरासनवारिणा । मिलाकर उसे भंगरे के स्वरस की एक भावना देकर सेव्यमुष्णाम्बुना वापि कोलवृद्धया पलं पिबेत् ॥ सुखा लें। जीर्णे च भोजनं कार्य स्निग्धं लघुहितश्च यत् ___अब यह चूर्ण २ भाग तथा उपरोक्त पञ्च विचर्चिकोदुम्बरपुण्डरीकनिम्ब चूर्ण १ भाग लेकर दोनों को अच्छी तरह कापालदकिटिभालसादि । मिला लें। शतारुविस्फोटविसर्पपामाः इसमें से नित्य प्रति प्रातःकाल १। तोला कफप्रकोपं विविधं किलासम् ॥ चूर्ण घी या दूध अथवा खैर और असन की छाल | भगन्दरं श्लीपदवातरक्तं के काथ के साथ १ मास तक सेवन करने से अठा- जडान्ध्यनाडीव्रणशीर्षरोगान्। . रह प्रकार के कुष्ठ, त्वग्दोष, नीलिका, व्यङ्ग, तिल, भा. प्र. में इसका नाम 'पञ्चनिम्बावलेह ' और कालक और सात प्रकारका क्षय रोग नष्ट होता है। च. द. में कुष्ठटरचूर्ण लिखा है । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy