SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ ४०६ ] भारत - भैषज्य रत्नाकरः । [ पकारादि शीतीकृताः क्षीणवलैर्वीक्ष्य दोषान् प्रयोजयेत् । | रोज़ाना १०-१० घटाकर सेवन करें। औषध तद्वै छागदुग्वे द्वे सहस्रे प्रयोजयेत् ॥ पचने पर साटी चावलों का भात घी दूध के साथ एभिः प्रयोगः पिप्पल्यः कासश्वासगलग्रहान् । खाना चाहिये । यक्ष्ममेहग्रहण्यर्शः पाण्डुत्वविषमज्वरान् ॥ नन्ति शोफं वर्मिं हिध्मां प्लीहानं वातशोणितम् ।। यह १००० पीपल का रसायन प्रयोग है । बलवान व्यक्ति को यह प्रयोग कराना हो तो पिप्पलों को पीसकर खिलाना चाहिये । मध्यम बलवाले को दूध में पकाकर और क्षीणबल वालेको पिप्पलीका शीत कषाय बनाकर सेवन कराना चाहिये । नित्य प्रति ५, ८, ७ या १० पीपल शहद और घी के साथ सेवन करें । यह प्रयोग रसायन ( जराव्याधि - नाशक ) है | पीपलों को पलाशके क्षारके पानी की भावना देकर घी में भून लें। इनमें से ३-३ पीपल शहद के साथ प्रातःकाल, भोजन के पहिले और भोजन के पश्चात् सेवन करें । यह प्रयोग भी रसायन है । उपरोक्त १००० पिप्पली वाले प्रयोग के समान ही बकरी के दूध के साथ २००० पीपल भी सेवन कराई जाती हैं । ( इस प्रयोग में रोज़ाना २०-२० पीपल बढ़ाकर सेवन करनी चाहियें । ) पीपल के उपरोक्त समस्त प्रयोग खांसी, श्वास, गलग्रह, राजयक्ष्मा, प्रमेह, ग्रहणी, अर्श, पाण्डु, विषमज्वर, शोथ, वमन, हिचकी, प्लीहा और वातरक्त को नष्ट करते हैं । इति पकारादिकल्पप्रकरणम् । पहिले दिन १० पीपल दूध के साथ सेवन करें और दूसरे दिन इसी प्रकार २० पीपल सेवन करें । इसी प्रकार रोज़ाना १०-१० पीपल बढ़ाते हुवे दस दिन तक सेवन करें । ११ वें दिन से Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ पकारादिरसप्रकरणम् (४२५९) पञ्चनिम्बादिचूर्णम् (१) (वृ. यो. त. । त. १२०;बृ. नि. र. । त्वग्दोष. यो. र.; ग. नि.; वं. से.; वै. र. । कुष्ठ.; शा. ध. चूर्णाधि. ) पिचुमन्दफलं पुष्पं त्वक्पत्रं मूलमेव च । पञ्चैतानि सुसूक्ष्माणि समचूर्णानि कारयेत् ॥ अष्टभागावशेषेण खदिरासनवारिणा । भावयित्वा तु संयोज्य द्रव्याण्येतानि दापयेत् ॥ faraise विडङ्गानि व्याधिघातकशर्करान् । भल्लातकहरीतक्यौ शुण्ठ्यामलकगोक्षुरान् ॥ चक्रमर्दाच्च पिप्पलीं मरिचं निशाम् । लोह चूर्ण समायुक्तं समभागं प्रमाणतः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy