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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अञ्जनमकरणम् ] तृतीयो भागः। [३९९] - पारिभद्र (फरहद) की जड़ की छाल और | कर पुनः पकावें और जब वह गाढ़ा हो जाय सेंधा नमक का चूर्ण तथा तिल का तेल और तो उसमें १० पल (५० तोले ) पुष्पाञ्जन और कांजी समान-भाग लेकर सब को एकत्र घोट लें। श तोला काली मिर्चका महीन चूर्ण मिलाकर इसे आंख में आंजने से आंख की कफज उसकी गोलियां बना लें अथवा चूर्ण ही रहने दें। पीड़ा नष्ट होती है। इसे आंखमें आंजनेसे समस्त नेत्राभिष्यन्द, (४२२७) पालङ्कयादिगुटिका | लालिमा और पीड़ा आदि नष्ट होकर नेत्र शीघ्र (वै. म. र. । पटल १६) ही स्वच्छ हो जाते हैं । यह योग वैद्यांका एक मूलं पालङ्कथायाः कृष्णाशौ च तुरगगन्धायाः | रहस्य है। मूलं पृथक् पृथक् स्याभिष्क तुत्यं चतुर्निष्कम्।। (४२२९) पिण्डानम् जम्बीरसारपिष्टा गुटिकेयं नेत्ररोगतिमिरहरी ॥ (वा. भ. । उत्त. अ. १४ ) पालग ( शाक विशेष ) की जड़, पीपल, शंख और असगन्धकी जड़ १-१ भाग तथा | जातीशिरीषधवमेषविषाणपुष्पनीला थोथा ४ भाग लेकर सबको महीन पीसकर | | वैडूर्यमौक्तिकफलं पयसा सुपिष्टम् । जम्बीरी नीबूके रसमें घोटकर गोलियां बनावें । | आजेन ताम्रममुना प्रतनु मदिग्ध, | सप्ताहतः पुनरिदं पयसैव पिष्टम् ॥ इन्हें (पानीमें ) घिसकर आंखमें लगानेसे | पिण्डाञ्जनं हितमनातपशुष्कमक्षिण, तिमिर रोग नष्ट होता है। विद्धे प्रसादजननं बलकृच्च दृष्टेः ।। (४२२८) पाशुपतयोगः चमेलीके फूल, शिरीषपुष्प, धवके फूल, (वा. भ. । उत्त. अ. १६) मेदासिंगीके फूल, वैडूर्य मणि और मोती समान प्रपौण्डरीकं यष्टयाह दावीं चाष्टपलं पचेत् । भाग लेकर सबको बकरीके दूधमें पीसकर तांबेके जलद्रोणे रसे पूते पुनः पके घने क्षिपेत् ॥ बारीक पत्रों पर लेप कर दें। तदनन्तर एक सप्ताह पुष्पाअनादशपलं कर्षश्च मरिचात्ततः। पश्चात् उन पत्रोंसे औषधको छुड़ाकर पुनः बककृतश्चूर्णोऽथवा वर्तिः सर्वाभिष्यन्दसम्भवान् ॥ हन्ति रागरुजाघर्षान्सद्यो दृष्टिं प्रसादयेत् ।। " रीके दूधमें घोटें और छाया में सुखाकर अञ्जन अयं पाशुपतो योगो रहस्यं भिषजां परम् ॥ बना लें । ___ पुण्डरिया, मुलैठी और दारुहल्दी ४०-४० । नेत्रों में बेधन कर्म करनेके पश्चात् ( यथोतोले लेकर कूटकर सबको ३२ सेर पानीमें पकावें। चित कालमें ) इसे आंजनेसे दृष्टि स्वच्छ और जब ८ सेर पानी शेष रह जाय तो उसे छान- | बलवती हो जाती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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