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तैसमकरणम् ]
हतीयो भागः।
[३७३]
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विषमाख्यान् ज्वरान् सर्वान् मेदोमज्जगतानपि।| विषमज्वर नष्ट होते हैं। यह क्षीणेन्द्रिय व्यक्तियों वातिकं पैत्तिकचैव श्लैष्मिकं सामिपातिकम् ॥ के लिये और विशेषतः ध्वजभंग में उपयोगी है। क्षीणेन्द्रिये तथा शस्तं ध्वजभने विशेषतः। यह तैल दाह, पिपासा, पित्त, छर्दि, मुखशोष दद्यात्तैलं विशेषेण फलमस्य च कथ्यते ॥ | और २० प्रकार के प्रमेहों को निस्सन्देह नष्ट दाई पित्तं पिपासाश्च छर्दिश मुखशोषणम्। | करता है। प्रमेहान् विंशतिश्चैव नाशयेदविकल्पतः॥
(४१३७) प्रसारणीतेलम् (१) प्रमेहमिहिरं नाम्ना रतिनाथेन भाषितम् ॥
(वा. भ. । चि. अ. २१) कल्क-सोया, देवदारु, नागरमोथा, हल्दी, |
प्रसारणीतुलाका तैलमस्यं पयः समम् । दारुहल्दी, मूर्वा, कूठ, असगन्ध, सफेद चन्दन,
द्विमेदामिशिमञ्जिष्ठाकुष्ठरास्नाकुचन्दनः॥ लाल चन्दन, रेणुका, कुटकी, मुलैठी, रास्ना, दाल
जीवकर्षभकाकोलीयुगलामरदारूमिः। चीनी, इलायची, भरंगी, चव, धनिया, इन्द्रजौ,
| कल्कितैर्विपचेत्सर्वमारुतामयनाशनम् ।। करञ्जबोज, अगर, तेजपात, हर्र, बहेड़ा, आमला,
काथ-प्रसारणी ६। सेर । पाकार्य जल ३२ नलिका ( नाडीका शाक), सुगन्धवाला, खरैटी,
सेर । रोष काथ ८ सेर ।। कंघी, मजीठ, सरलकाष्ठ, कमल, लोध, सौंफ,
| बच, जीरा, खस, जायफल, बासा और तगर ।।
कल्क-मेदा, महामेदा, सौंफ, मजीठ, कूल, प्रत्येक ओषधि ११-१॥ तोला।
रास्ना, लाल चन्दन, जीवक, ऋषभक, काकोली,
क्षीरकाकोली और देवदार। सब समान भागद्रव पदार्थ-शतावर का रस २ सेर, लाखका
मिश्रित १३ तोले ४ मारो। रस' ८ सेर, दहीका पानी ( मस्तु) ८ सेर और
२ सेर तिल के तेल में उपरोक्त काथ, कल्क दूध २ सेर ।
और २ सेर दूध मिलाकर पकावें । जब तैल मात्र विधि-२ सेर तिलतैल में उपरोक्त समस्त ।
। शेष रह जाय तो छान लें। पदार्थ मिलाकर पकावें। जब तेलमात्र शेष रह जाय तो छान ले । तदनन्तर इस में गन्धद्रव्य
यह तेल समस्त वातज रोगों को नष्ट करता है। मिलाफर पुनः पाक करें।
। (४१३८) प्रसारणीतलम् (२) इसकी मालिश से वात-विकार तथा वातज
। (चं. से. । वा व्या.; भा. प्र.म. खं. वा. व्या.) पित्तज कफज सन्निपातज मेदोगत और मांसगत
असारिण्या रसे सिद्धं तैलमैरण्डज पिवेत् ।
सर्वदोषहरश्चैव कफरोगहरं परम् ।। लक्षारस बनाने की विधि भा. भ. र. भाग १ पृष्ठ ३५३ पर देखिये।
४ सेर प्रसारणी को ३२ सेर पानी में पका२ गन्ध द्रव्य गकारादि कवाय प्रकरण में देखिये। । कर ८ सेर पानी शेष रहने पर छान लें । इस में
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