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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तैसमकरणम् ] हतीयो भागः। [३७३] - - - विषमाख्यान् ज्वरान् सर्वान् मेदोमज्जगतानपि।| विषमज्वर नष्ट होते हैं। यह क्षीणेन्द्रिय व्यक्तियों वातिकं पैत्तिकचैव श्लैष्मिकं सामिपातिकम् ॥ के लिये और विशेषतः ध्वजभंग में उपयोगी है। क्षीणेन्द्रिये तथा शस्तं ध्वजभने विशेषतः। यह तैल दाह, पिपासा, पित्त, छर्दि, मुखशोष दद्यात्तैलं विशेषेण फलमस्य च कथ्यते ॥ | और २० प्रकार के प्रमेहों को निस्सन्देह नष्ट दाई पित्तं पिपासाश्च छर्दिश मुखशोषणम्। | करता है। प्रमेहान् विंशतिश्चैव नाशयेदविकल्पतः॥ (४१३७) प्रसारणीतेलम् (१) प्रमेहमिहिरं नाम्ना रतिनाथेन भाषितम् ॥ (वा. भ. । चि. अ. २१) कल्क-सोया, देवदारु, नागरमोथा, हल्दी, | प्रसारणीतुलाका तैलमस्यं पयः समम् । दारुहल्दी, मूर्वा, कूठ, असगन्ध, सफेद चन्दन, द्विमेदामिशिमञ्जिष्ठाकुष्ठरास्नाकुचन्दनः॥ लाल चन्दन, रेणुका, कुटकी, मुलैठी, रास्ना, दाल जीवकर्षभकाकोलीयुगलामरदारूमिः। चीनी, इलायची, भरंगी, चव, धनिया, इन्द्रजौ, | कल्कितैर्विपचेत्सर्वमारुतामयनाशनम् ।। करञ्जबोज, अगर, तेजपात, हर्र, बहेड़ा, आमला, काथ-प्रसारणी ६। सेर । पाकार्य जल ३२ नलिका ( नाडीका शाक), सुगन्धवाला, खरैटी, सेर । रोष काथ ८ सेर ।। कंघी, मजीठ, सरलकाष्ठ, कमल, लोध, सौंफ, | बच, जीरा, खस, जायफल, बासा और तगर ।। कल्क-मेदा, महामेदा, सौंफ, मजीठ, कूल, प्रत्येक ओषधि ११-१॥ तोला। रास्ना, लाल चन्दन, जीवक, ऋषभक, काकोली, क्षीरकाकोली और देवदार। सब समान भागद्रव पदार्थ-शतावर का रस २ सेर, लाखका मिश्रित १३ तोले ४ मारो। रस' ८ सेर, दहीका पानी ( मस्तु) ८ सेर और २ सेर तिल के तेल में उपरोक्त काथ, कल्क दूध २ सेर । और २ सेर दूध मिलाकर पकावें । जब तैल मात्र विधि-२ सेर तिलतैल में उपरोक्त समस्त । । शेष रह जाय तो छान लें। पदार्थ मिलाकर पकावें। जब तेलमात्र शेष रह जाय तो छान ले । तदनन्तर इस में गन्धद्रव्य यह तेल समस्त वातज रोगों को नष्ट करता है। मिलाफर पुनः पाक करें। । (४१३८) प्रसारणीतलम् (२) इसकी मालिश से वात-विकार तथा वातज । (चं. से. । वा व्या.; भा. प्र.म. खं. वा. व्या.) पित्तज कफज सन्निपातज मेदोगत और मांसगत असारिण्या रसे सिद्धं तैलमैरण्डज पिवेत् । सर्वदोषहरश्चैव कफरोगहरं परम् ।। लक्षारस बनाने की विधि भा. भ. र. भाग १ पृष्ठ ३५३ पर देखिये। ४ सेर प्रसारणी को ३२ सेर पानी में पका२ गन्ध द्रव्य गकारादि कवाय प्रकरण में देखिये। । कर ८ सेर पानी शेष रहने पर छान लें । इस में For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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