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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - तैलपकरणम् ] सृतीयो भागः। [३६३] (४११०) पञ्चवल्कलतैलम् इन दोनों योगों में से किसी एक की ओष(वं. से. । कर्ण.) धियां ११-१। तोला लेकर सब को पानी के साथ विल्वोदुम्बरजम्मूदधित्यचूतानां वल्कलैः सिद्धम् | पीस लें । तदनन्तर यह कल्क, ८ सेर तेल और ३२ सेर पानी एकत्र मिलाकर पकावें । जब पानी श्रुतिरोधश्च निहन्ति तैलं प्रपाकपूतिनुतं जल जाय तो तेलको छान लें। जयति ।। इस तैलकी अनुवासन बस्ति लेने से समस्त काय-बेलकी छाल, गूलरकी छाल, जामनकी | प्रकारके ज्वर, खांसी और वातज रोग नष्ट होते हैं। छाल, कैथकी छाल और आमकी छाल समान भाग (४११२) पटोलादिस्नेहः मिश्रित ४ सेर । पाकार्थ जल ३२ सेर । शेष (वं. से. । ज्वरा.) काथ ८ सेर । पटोलपिचुमन्दाभ्यां गुडूच्यामलकेन च । कल्क-उपरोक्त चीजें समान-भाग-मिश्रित मदनैश्च शृतं स्नेहं ज्वरनमनुवासनम् ।। १३ तोले ४ माश । काथ-पटोल, नीमकी छाल, गिलोय, आमला काथ, कल्क और २ सेर तेलको एकत्र मिला- और मैनफल समान-भाग-मिश्रित ४ सेर । पाकार्थ कर :पकावें । जब काथ जल जाय तो तेलको जल ३२ सेर । शेष काथ ८ सेर । छान लें। कल्क-उपरोक्त चीजें समभाग मिश्रित १३ ___ कानोका बन्द होना, कर्णपाक और मवाद तोले ४ मासे लेकर पानी के साथ पीस लें। निकलना आदि कर्णरोग इस को कान में डालनेसे विधि-काथ, कल्क, और २ सेर तेल को नष्ट हो जाते हैं। एकत्र मिलाकर पकावें । जब काथ जल जाय तो तैल को छान लें। (४१११) पटोलादितैलम् (वं. से. । ज्वरा.) इसको अनुवासन बस्ति लेने से ज्वर नष्ट होता है। पटोलमदनारिष्टगुडूचीमधुकैः शृतम् । | (४११३) पटोलीतैलम् श्वदंष्ट्रामदनभृङ्गीमधुकारिष्टवासकैः । | (वं. से.; भा. प्र. म. खं.; यो. र.; वृ. नि. र.। अश्वगन्धेति तैलस्य कार्षिकैराटकं पचेत् । ___ अग्निदग्ध.) अनुवासनकं तैलं सर्वज्वरविनाशनम् ॥ | सिद्ध कपायकल्काभ्यां पटोल्या: कटुतैलकम् । कसनान्वातविकारांश्च नाशयेदपि चोत्थितान् ॥ दग्धव्रणरुजात्रावदाइविस्फोटनाशनम् ॥ (१) पटोल, मैनफल, नीमकी छाल, गिलोय - ग. नि.; भै. र.; द. ६.; र. र. और इन्द और मुलैठी। अथवा (२) गोखरु, मैनफल, काकड़ा-माधव में पटोल के स्थान में पाटलो (पाढल या लाल सिंगी, मुलैठी, नीमकी छाल, वासा और असगन्ध, । लोध ) लिखा है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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