SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [३१०] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [पकारादि शठी मुण्डितिकाचूर्णमारनालेन पाययेत् ॥ (३९७८) पुनर्नवादिचूर्णम् (३) आमाशयोत्थवातघ्नं चूणे पेयं सुखाम्बुना। (ग. नि. । उदर.) आमवातं निहन्त्याशु गृध्रसीमुद्धतामपि ॥ पुनर्नवा (साठी-बिसखपरा), गिलोय, पुनर्नवाशृङ्गवेरं देवदारु च भागिकाः। सेठ, सोया, बिधारा, शठी (कचूर ) और यवानी स्याद्विडषं च चित्रकश्चार्द्धभागिकाः ॥ त्रित्रिगुणितं चूर्णमुष्णेन पयसा पिबेत् । मुण्डी समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे काजीके साथ पीनेसे आमाशयगत गोमूत्रेणाथवा प्लीहशोफार्शः पाण्डुरोगजित्॥ वायु, तथा उष्ण जलके साथ पीनेसे आमवात और पुनर्नवा ( साठी-विसखपरा ), सेठ और कष्टसाध्य गृध्रसी शीघ्र ही नष्ट हो जाती है। देवदारु १-१ भाग; अजवायन, बायबिडंग और चीता आधा आधा भाग; और निसोत ३ भाग (३९७७) पुनर्नवादिचूर्णम् (२) लेकर चूर्ण बनावें। ( ग. नि.; भै. र.'; वं. से.; वृ. नि. र.; यो. र.; इसे उष्ण जल या गोमूत्रके साथ पीनेसे वृ. मा. । शोथ.; वृ. यो. त. । त. १०६) | तिल्ली, शोथ, अर्श, और पाण्डुरोग नष्ट होता है । पुनर्नवामृतापाठादारुबिल्वं श्वदंष्ट्रिका। वृहत्यौ द्वे रजन्यौ द्वे पिप्पलीमूलचित्रकम् ॥ पुनर्नवादिचूर्णम् (४) समभागानि सञ्चये गवांमूत्रेण वै पिबेत् । (च. सं. । चि. अ. २६) बहुमकारं श्वयधुं सर्वगात्रविसारिणम् ॥ रसप्रकरणमें देखिये। हन्ति चाशूदराण्यष्टौ व्रणांश्चैवोद्धतानपि ॥ (३९७९) पुनर्नवादियोगः (१) पुनर्नवा (साठी-बिसखपरा ), गिलोय, पाठा, देवदारु, बेलछाल, गोखरु, दोनो कटेली, (वृ. नि. र. । गुल्म.) हल्दी, दारुहल्दी, पीपलामूल और चीता समान | श्वेतं पुनर्नवामूलं तुल्यं सैन्धवचूर्णितम् । भाग लेकर चूर्ण बनावें । सघृतं लेहयेद्गुल्मी क्षौदैर्वाथ जलोदरी ।। ___ इसे गोमूत्रके साथ सेवन करनेसे समस्त ____ सफेद पुनर्नवा ( साठी-बिसखपरा) की शरीरपर फैला हुवा अनेक प्रकारका शोथ, आठां जड़ और सेंधा नमक समान भाग मिलाकर चूर्ण प्रकारके उदररोग और भयङ्कर व्रण (घाव ) | बनावें । शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। ___ इसे घृतके साथ सेवन करनेसे गुल्म, और १ भैषज्यरत्नावली में गिलोयकी जगह हर्र और | शहदके साथ सेवन करनेसे जलोदर नष्ट होता है। पीपलामूलकी जगह पीपल तथा गजपीपल लिखा है एवं वासा अधिक है। (मात्रा-१-१॥ माशा) For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy