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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [२९५] ____कमलगट्टेका चूर्ण और मिश्री समान भाग | रसेन मध्वाज्ययुतानि पीत्वा मिलाकर दूधके पानी (दूधको फटकी आदिसे वृद्धोपि मासात्तरुणत्वमेति ।। फाड़कर निकाले हुवे पानी ) के साथ सेवन करने | पलाश (ढाक) के बीज (पलाश पापड़ा ) से १ मासमें स्त्रीके स्तन अवश्य ही दृढ़ हो और बायबिडंग समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । जाते हैं। इसमें आमलेका रस, शहद और घी मिला(३९१२) पद्मादिचूर्णम् | कर पीनेसे १ मासमें वृद्ध पुरुष भी तरुणके समान (यो. र.; वं. से. । अतिसा.) हो जाता है। पद्म समगा मधुकं बिल्वजन्तु शलाटु च। (३९१५) पलाशादिचूर्णम् पिबेत्तण्डुलतोयेन सक्षौद्रमगदं परम् ॥ (वा. भ. । उ. अ. ३४) कमल, लज्जालु ( या मजीठ ), मुलैठी और पलाशधातुकीजम्बूसमझामोचसर्जजः । बेलगिरी समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। दुर्गन्धे पिच्छिले क्लेदस्तम्भनश्चूर्णमिप्यते ॥ इसे शहदके साथ चाटकर ऊपरसे चावलांका पलाश की छाल ( या गांद ), धायके फूल, पानी पीनेसे अतिसार नष्ट होता है । जामनकी छाल, लज्जालु, मोचरस और राल समान (यह योग पक्कातिसारमें उपयोगी है।) | भाग लेकर चूर्ण बनावें। (३९१३) पलाशफलादियोगः यह चूर्ण योनिकी दुर्गन्ध, पिच्छिलता (वै. म. र.। पट. ३) (चिपचिपाहट) और क्लेद (गीलेपन) को नष्ट पलाशोदुम्बरफलं मरिचैः सह भक्षितम् । करता है। कासं हेरबिभिवारैः कायक्लेशकरं निशि ॥ (३९१६) पाटलाभस्मयोगः पलाश (ढाक) और गूलरके फल तथा काली (वृ. मा. । मूत्राघा.) मिर्च समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । | सतैलं पाटलाभस्मक्षारवद्वापरिसुतम् । इसके केवल ३ बारके ही सेवनसे रात्रिमें पाढलकी राखको ६ गुने पानीमें घोलकर कष्ट देने वाली खांसी नष्ट हो जाती है । । क्षार बनानेकी विधिसे २१ बार छान लें । इसमें (मात्रा--६ माशे । शहदके साथ ।) तेल मिला कर पिलानेसे मूत्राघात नष्ट होता है। (३९१४) पलाशबीजादियोगः । (३९१७) पाठादिचूर्णम् (१) (रा. मा. । बालरो.) ( भा. प्र. । अतिसा.) पलाशबीजानि विडङ्गयुक्ता पाठां पिपा च गोदना तथा मध्यत्वगाम्रजा। न्युमिश्रितान्यामलकीफलानाम् । । अतीसारं व्यथादाहं हन्त्येवाशु न संशयः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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