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- भैषज्य - रत्नाकरः ।
[ २९४ ]
(३९०६) पथ्यादियोग:
(बृ. नि. र. । ज्वर ) पथ्यां तैलघृतक्षौद्रैलिहेद्दाहज्वरापहम् । कासासृपित्तवीसर्पश्वासं हन्ति वमिमपि ॥
भारत
हर्र के चूर्ण में तेल, घी और शहद मिलाकर चाटने से दाह, ज्वर, खांसी, रक्तपित्त, वीसर्प, श्वास और छर्दि (वमन) नष्ट हो जाती है ।
( हर्र ३ माशे, घी ३ माशे, तेल ३ माशे, शहद २ तोले । )
(३९०७) पथ्याद्यं चूर्णम् (१) (यो. र.; बृ. मा.; वृ. नि. र.; ग. नि. । अजी.) पथ्यापिप्पलीसंयुक्तं चूर्ण सौवर्चलं पिबेत् । मस्तुनोष्णोदकेनापि बुद्धा दोषगतिं भिषक् ।। चतुर्विधम जीर्णश्च मन्दानलमथारुचिम् । आध्मानं वातगुल्मञ्च शूलञ्चाशु विनाशयेत् ॥
हर्र, पीपल और सचल (काला नमक) समान भाग लेकर चूर्ण बनावें |
इसे मस्तु या उष्ण जल इत्यादि रोगोचित अनुपानके साथ सेवन करनेसे चार प्रकार की अजीर्ण, मन्दाग्नि, अरुचि, अफारा, वातज गुल्म और शूल शीघ्र ही नष्ट हो जाता है ।
( मात्रा --- १ - १॥ माशा | ) (३९०८) पथ्याचं चूर्णम् (२)
(बृ. मा. भा. प्र. । आमवाता. ) पथ्याविश्वयवानीभिस्तुल्याभिश्चूर्णितं पिबेत् । तोष्णोदकेनापि काञ्जिकेनाऽथवा पुनः ॥
[ पकारादि
आमवातं निहन्त्याशु शोथं मन्दाग्नितामपि । पीनसं कासहृद्रोगं स्वरभेदमरोचकम् ॥
हरे, सोंठ और अजवायन समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
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इसे तक्र, उष्णजल या काञ्जीके साथ पीने से आमवात, शोथ, मन्दाग्नि, पीनस, खांसी, हृद्रोग, स्वरभेद और अरुचिका नाश होता है । ( मात्रा - २ - ३ माशे । ) (३९०९) पथ्यायोगः
( वृं. मा. । कुष्टा.) शोथपाण्डुामयहरी गुल्ममेहकफापहा । कच्छूपामाहरी चैव पथ्या गोमूत्रसाधिता ।। हरेको गोमूत्र में पकाकर सुखा कर चूर्ण करके रखें।
इसके सेवन से शोथ, पाण्डु, गुल्म, प्रमेह, कफ, कच्छू और पामाका नाश होता है । ( मात्रा - ३-४ माशे । ) (३९१०) पद्मबीजयोगः
(ग. नि. । कासा. )
चूर्णन्तु पद्मबीजानां मधुना संप्रयोजितम् । पित्तकासार्दितो लिह्यात्स्वास्थ्यं स लभते क्षणात् ॥
कमलगट्टे चूर्ण को शहद में मिलाकर चाटसे पित्तज खांसी शीघ्र ही नष्ट हो जाती है । ( मात्रा -- ३-४ माशे । दिन में ३-४ बार ।) (३९११) पद्मबीजादियोगः
( वृ. नि. र. । स्त्री. ) पद्मवीजं सितया भक्षितं दुग्धवारिणा । दृढं स्त्रीणां स्तनद्वन्द्वं मासेन कुरुते किल ||
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