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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[पकारादि
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इसे गोमूत्रके साथ सेवन करनेसे कफजशूल (३८९८) पथ्यादिचूर्णम् (५) शीघ्र ही नष्ट हो जाता है । ( मात्रा ३-४ माशे)
(वृ. नि. र. । कास.) (३८९६) पथ्यादिचूर्णम् (३) पथ्या विश्वा कणा मुस्ता देवदारुः समांशकम् ।
( . मा. । छर्दि.) एतच्चूर्ण मधुपेतं श्लेष्मकासापनुत्तये ॥ पथ्याक्षधात्रीमगधोषणानां
____ हर, सोंठ, पीपल, नागरमोथा और देवदार चूर्ण सलाजाञ्जनकोलमध्यम् । समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । छर्दि निहन्त्याशु समाक्षिकन्तु
। इसे शहदके साथ चाटनेसे कफज खांसी ___ सत्र्युषणं वापि कपित्यमध्यम् ।। नष्ट होती है।
हरे, बहेड़ा, आमला, पीपल, काली मिर्च, (दिनभरगे १ तोले तक थोड़ा थोड़ा धानकी खील, सुरमा और बेरकी गुटलीकी मन्ना, । करके कई बारमें चटा देना चाहिये ।) ( गिरी ) समानभाग--लेकर चूर्ण बनावें ।
(३८९९) पथ्यादिचूर्णम् (वृहत्) (६) - इसे शहदके साथ चाटनेसे वमन शीत्र ही (. नि. र. । अजीर्ण.) नष्ट हो जाती है।
पथ्यावचाहिङ्गकलिङ्गभृङ्ग कैथका गूदा और सांठ, मिर्च तथा पीपलके सौवर्चलैः सातिविषैः सुचूर्ण्य । समानभाग-मिश्रित चूर्णको भी शहद के साथ | मुखाम्बुपीतो विनिहन्त्यजीर्णसेवन करनसे छर्दि (वमन) रुक जाती है।
शुलं विपूची कसनश्च सद्यः ।। ( मात्रा-३-४ माटो । थोड़ी थोड़ी देरमें हर्र, बच, हींग, इन्द्रजौ, भंगरा, सञ्चल. जरा जरा सी दवा बार बार चटानी चाहिये ।) ( काला नमक ) और अतीस । समान भाग लेकर (३८९७) पथ्यादिचूर्णम् (४)
चूर्ण बनावें । इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे (वृ. नि. र. । कफाति.) अजीर्ण, शूल, विषूचिका और खांसी शीघ्र ही पथ्या पाठा वचा कुष्ठं चित्रकः कटुरोहिणी। नष्ट हो जाती है। चूर्णमुष्णाम्भसा पीतं श्लेष्मातीसारनाशनम् ॥
(३९००) पथ्यादिचूर्णम् (७)
(र. र. । बालरोग.) हरं, पाठा, बच, कूट, चीता और कुटकी ।
| पथ्याकुष्ठवचाचूर्ण मधुतैलयुतं पिवेत् । सब चीजें समान भाग लेकर चूर्ण बनावें।
ग्रीवादाढयंकरं श्रेष्ठं तालुकण्टकनाशनम् ।। इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे कफज
हर्र, कूट और बच समान भाग लेकर अतिसार नष्ट होता है।
चूर्ण बनावें। ( मात्रा ३ माशे । दिनमें ३-४ बार दें।)। इसमें शहद और तेल मिला कर चटानेसे
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