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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चूर्णप्रकरणम् ] करके सुखा दें । इसे उपले की आग में फूंकें । जब हाण्डी स्वांगशीतल हो जाय तो उसमें से औषधको निकालकर पीस लें । तृतीयो भागः । इसे दही या मस्तु के साथ देनेसे गुल्म, पाण्डु, उदररोग, शोथ और अर्शका नाश होता है । ( मात्रा --- ३-४ माशे । ) (३८९२) पत्रादिचूर्णम् ( वं. से.; व्रं. मा. । रक्तपि . ) पत्रं त्वगै लानतचन्दनानां श्यामास शुण्ठीमधुकोत्पलानाम् । स्याद्वात्रिवासा' द्विगुणोत्तरानां चूर्ण सिताक्षौद्रसमन्वितानाम् ॥ दाहे ज्वरे लोहितपित्तयुक्ते कासे क्षये शोणितमूत्रकृच्छ्रे । रक्तेऽतिमात्रं पतिते मुखेन sr नासाश्रुति मेयोनौ || प्रोक्तं पुरा रक्तविनिग्रहार्थं चूर्ण वसिष्टेन महागदन्नम् ॥ तेजपात १ भाग, दालचीनी २ भाग, इलायची ४ भाग, तगर ८ भाग, लालचन्दन १६ भाग, निसोत ३२ भाग, सांठ ६४ भाग, मुलैठी १२८ भाग, निलोत्पल २९५६ भाग, आमला ५१२ भाग और बासा १०२४ भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे ( समान भाग ) खांडमें मिलाकर शहदके साथ चाटने से दाह, ज्वर, रक्तपित्त, खांसी, क्षय, मूत्रकृच्छ्र, मूत्रके साथ रक्त आना, मुखसे १ सधात्रि वांशीति पाठान्तरम् । [ २९१] अत्यधिक रक्त आना या गुदा, नासिका, कान, मूत्रमार्ग और योनिसे रक्तस्राव होना इत्यादि विकार शान्त होते हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस चूर्णकी योजना प्राचीन काल में वसिष्ठ जीने की थी । ( मात्रा - ३-४ माशे । ) (३८९३) पथ्याचूर्णयोगः (बृ. मा. | रक्तपि. ) aresस्वर से पथ्या सप्तधा परिभाविता । कृष्णा वा मधुना लीढा रक्तपित्तं श्रुतं जयेत् ।। हरे या पीपलको वासेके स्वरसकी सात भावना देकर शहदके साथ सेवन करनेसे रक्तपित्त शीघ्र ही नष्ट हो जाता है । (३८९४) पथ्यादिचूर्णम् (१) ( भा. प्र. । छर्दि . ) पथ्यात्रिकदुधान्याकजीरकाणां रजो लिइन् । मधुना नाशयेच्छर्दिम रुचिश्च त्रिदोषजाम् ॥ हरे, सांठ, मिर्च, पीपल, धनिया और जीरा । समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे शहद के साथ सेवन करनेसे त्रिदोषज छर्दि और अरुचि नष्ट होती है । ( मात्रा - ३ माशे । ) (३८९५) पथ्यादिचूर्णम् (२) ( वृ. नि. र. । शूल . ) चूर्ण पथ्या वचा वह्नि कटुरोहिणी रुक् समम् । श्लेष्मशुलं हरत्याशु पीतं गोमूत्रसंयुतम् ॥ हर्र, बच, चीता, कुटकी और कूठ । समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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