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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कसायाकरणम् ] तृतीयो भागः। [२९७] - - (३६९९) पञ्चमूलीकषायः (१) (३७०२) पश्चमूलीकाथः (१) (आ. वे. वि. । ज्वरा.) (च. सं.। चि. अ. ५ गुल्म.; ई. मा.। गुल्म.) पत्रमूलीकषायन्तु पाचनं वातिके ज्वरे। पञ्चमूलीशृतं तोयं पुराणं वारुणीरसम् । पञ्चमूल (बेल, अरलु, खम्भारी, पाढल और कफगुल्मी पिबेत्काले जीर्ण मावीकमेव वा।। भरणीकी छाल) का काथ वातज्वर में दोषों को पञ्चमूल ( बेल, अग्लु, खम्भारी, पाढल, और पकाता है। अरणीकी छाल ) के काथमें पुरानी वारुणी सुरा (३७००) पञ्चमूलीकषायः (२) | या पुराना माध्वी सुरा मिलाकर पीनेसे कफगुल्म नष्ट होता है। (वै. जी. । प्रथ. विला.) (३७०३) पञ्चमूलीकाथ: (२) पत्रमूलीकषायस्य सकृष्णस्य निषेवणात् । जीर्णज्वरः कफकृतो विदधाति पलायनम् ॥ (वृ. नि. र.; वं. से.; . मा.; यो. र. । वातव्या.) | पञ्चमूलीकृतः काथो दशमूलीकृतोऽथवा । पश्चमूल (बेल, अरलु, खम्भारी, पाढल और रूक्षस्वेदस्तथा नस्यं मन्यास्तम्भे प्रशस्यते ॥ अरणी की छाल) के काथमें पीपलका चूर्ण मिला ___मन्यास्तम्भ रोगमें पञ्चमूल या दशमूलका कर पीनेसे कफज जीर्णज्वर नष्ट हो जाता है। काथ और रूक्षस्वेद तथा नस्य हितकारक है । (काथ १० तोले। पीपलका चूर्ण १ माशे से ३ माशे तक) (३७०४) पञ्चमूलीक्षीरम् (३७०१) पश्चमूलीकषायः (३) (. मा.; ग. नि. । बालरो.) पञ्चमूलीकपायेण सघृतेन पयः शृतम् । (वं. से.; . मा. । वातव्या.) सावेरं सगुडं शीतं हिकार्दितः पिबेत् ॥ पञ्चमूलीकषायन्तु रुबुतैलत्रिवधुतम् ।। पञ्चमूल (बेल, अरलु, खम्भारी, पाढल और गृध्रसीगुल्मशूलश्च पीतं सद्यो नियच्छति ॥ अरणीकी छाल ) और घीके साथ दूध पकाकर पञ्चमूल (बेल, अरल, खम्भारी, पाढल, और ठंडा करके उसमें सांठका चूर्ण और गुड मिलाकर अरणी की छाल ) के काथमें अरण्डका तैल (का- पीनेसे हिचकी नष्ट होती है। ष्ट्रायल) और निसोतका चूर्ण मिलाकर पीनेसे (पञ्चमूल का काथ ८० तोले, दूध २० गृध्रसी गुल्म और शूल रोग शीघ्र ही नष्ट हो तोले, घी ११ तोला । सबको मिलाकर पकावें। जाता है। दूध शेष रहने पर छान लें । सेोठका चूर्ण १ से (काथ १० तोले, अरण्डका तेल २ तोले, | ३ माशे तक और गुड़ इतना मिलावे कि दूध निसोत ३ माशे ।) | मीठा हो जाय । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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