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मिश्रप्रकरणम्
तृतीयो भागः।
[ २५१]
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(३६६८) नवनीतादियोगः
अर्द्धभाग जलमिश्रित बकरीके दूध तथा (वं. से. । रक्तार्श.)
सेांठ, नीलोफर और सुगन्धबालाके कल्कसे सिद्ध नवनीततिलाभ्यासात्केसर
पेया या पृष्ठपर्णी के काथसे बनी हुई पेया रक्तानवनीतशर्कराभ्यासात् । | तिसार को नष्ट करती है । दधिसरमथिताभ्यासाद्
(३६७१) नागरादिप्रयोगः गुदजाः शाम्यन्ति रक्तवाहाः ॥
( यो. र. । प्रदर.) नवनीत ( नौनी घी) और तिल; अथवा | नागरं मधुकं तैलं सिता दधि च तत्समम् । नागकेसर का चूर्ण नवनीत और खांड मिलाकर; खजेनोन्मथितं प्रीतं वातप्रदरनाशनम् ॥ अथवा दहीकी मलाई या तक्र सेवन करनेसे रक्तज
सोंठ और मुलैठीका चूर्ण तथा तैल, मिश्री अर्श नष्ट होती है।
और दही समान भाग लेकर सबको मथनीसे (३६६९) नवायूषः
अच्छी तरह मथकर सेवन करनेसे वातज प्रदररोग (वं. से.; वृं. मा. । कासा.; वृ. यो. त.।त.७८) नष्ट होता है । मुद्गामलाभ्यां यवदाडिमाभ्यां
(३६७२) नागादिशलाका ककेन्धुना मूलकशुण्ठकेन ।
(वा. भ. । उ. अ. १३; ग. नि.। नेत्र.) शुण्ठीकणाभ्यां सकुलित्यकेन
श्रेष्ठाजलं भृङ्गरसं सविषाज्यमजापयः । यूषो नवाङ्गः कफरोगह ॥
यष्टीरसं च यत्सीसं सप्तकृत्त्वः पृथक् पृथक् ।। मंग, आमला, जौ, अनारदाना, बेर, सूखी- | तप्तं तप्तं पायितं तच्छलाका मूली, सेठ, पीपल और कुलथी का यूष कफज | नेत्रे युक्ता साञ्जनानञ्जना वा। खांसीको नष्ट करता है।
तैमिर्मिस्रावपैच्छिल्यपैल्लं ( विधि—सब चीजें समान भाग मिलाकर | कण्डूं जाइयं रक्तराजीच हन्ति ।। २॥ तोले लें और ४ सेर पानीमें पकाकर २ सेर सीसेको पिघला पिघलाकर सात सात बार पानी शेष रक्खें और छानकर उसमें २॥ तोले त्रिफला, भंगरा और अतीसके काथ, घी, बकरीके मुंग डाल कर पकावें, जब वह अच्छी तरह गल दूध और मुलैठीके काथमें बुझाकर उसकी सलाई जाय तो ठण्डा करके छान लें।)
बनवावें। (३६७०) नागरादिपेया
___इससे अञ्जन लगाने या इसे खाली ही (वं. से. । अतिसा.)
आंखमें फेरनेसे तिमिर, अर्म, स्राव, नेत्रोंकी चिपछागे चार्दोदके क्षीरे नागरोत्पलबालकैः। | चिपाहट, पिल्ल, कण्डू, जड़ता और लाल रेखाएं पेया रक्तातिसारनी पृष्ठपर्ध्या च साधिता ॥ । नष्ट होती हैं।
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