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[२४६)
भारत-भैषज्य रत्नाकरः।
[नकारादि
ज्वर, अर्श, कामला, पाण्डु, अग्निमांद्य और प्रमेह । इले शहद और घोमें मिलाकर चाटनेसे नष्ट होता है।
| कामला और पाण्डुरोग नष्ट होता है। (३६५६) नित्योदितरसः (पञ्चामृतरसः) । ( मात्रा-१ माशा । ) (भै. र.; र. का. धे.; वृ. नि. र. र. रा. सु., । (३६५८) निशादिवटी वै. रह.; रं: सा. सं. । अर्श.; रसे. चिं. । अ.
(वा. भ. । कुष्ठ.) ९; र. म. । अ. ७; यो. त. ( त. २३)
| निशाकनानागरवेल्लतोवर मृतसूतार्कलौहाम्रविषं गन्धं समं समम् ।
सवहिताप्यं क्रमशो विकर्षितम् । सर्वतुल्यांशभल्लातफलमेकत्र चूर्णयेत् ॥ गवाम्बुपीतं वटकीकृतं तथा
वैः शूरणमाणोत्यैर्भाव्यं खल्ले दिनत्रयम् । निहन्ति कुष्ठानि सुदारुणान्यपि ॥ मापमात्र लिहेदाज्यै रसश्चाीसि नाशयेत् ॥ हल्दी १ भाग, पीपल २ भाग, सोंठ ३ भाग रसो नित्योदितो नाम गुदोद्भवकुलान्तकः ॥ बायबिडंग ४ भाग, तुवरक ५ भाग, चीता ६ भाग,
पारदभस्म ( अभावमें रससिन्दूर ), ताम्र- और सोनामक्खी-भस्म ७ भाग लेकर सबके चूर्णको भस्म, लोहभस्म, अभ्रकभस्म, शुद्ध बछनाग (मीठा- गोमूत्रमें घोटकर (१-१ माशेकी) गोलियां तेलिया), और शुद्ध गन्धक १-१ भाग तथा / बनावें । सबसे आधा शुद्ध भिलावांका चूर्ण लेकर सबको इनके सेवनसे भयङ्कर कुष्ठ भी नष्ट हो ३-३ दिन जिमीकन्द और मानकन्दके रसमें | जाते हैं। घोटकर रक्खें।
अनुपान-गोमूत्र । इसमें से १ माशा चूर्ण घीमें मिलाकर चाटने
- (३६५९) नीलकण्ठरसः (१) से अर्श रोग नष्ट होता है। व्यवहारिक मात्रा-२-३ स्ती)
(र. का. धे. । अग्निमां.)
शुद्धं रसं ताम्रभस्म गन्धक मामकेसरम् । (३६१७) निशादिलोहम्
अमृतं रेणुकं वनितिन्तडीकजलं समम् ॥ (र. चं.; र. सा. सं.; र. रा. सुं.; धन्वं. । पाण्डु.) सर्वतुल्यं गुडं दत्त्वा वटिकां कोलसम्मिताम् । लोहचूर्ण निशायुग्मं त्रिफलारोहिणीयुतम् ।। | भक्षयेत्मातरुत्थाय वकिमान्धप्रशान्तये ॥ मलियान्मधुसर्पियो कामलापाण्डुशान्तये ॥ | नीलकण्ठो रसो नाम क्षयशूलनिबर्हणः॥
लोहभस्म, हल्दी, दारुहल्दी, हर्र, बहेड़ा, शुद्रपारा, ताम्रभस्म, गन्धक, नागकेसर, शुद्ध आमला और कुटकीका चूर्ण १-१ भाग लेकर बछनाग ( मोठातेलिया ), रेणुका, चीता, तिन्लसबको एकत्र खरेल करें।
डीक और सुगन्धवाला समान भाग लेकर प्रश्न
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