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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तृतीयो भागः । रसप्रकरणम् ] इत्यादि रोग नष्ट होते, और अग्नि तथा बल वीर्यकी वृद्धि होती है 1 (३६५४) नित्यारोग्येश्वरो रसः ( र. र. 1 मेहा. ) सूतं मृताभ्रवङ्गाभ्यां तुल्यभागं प्रकल्पयेत् । महानिम्बोत्थबीजस्य चूर्ण योज्यं त्रिभिः समम्॥ मधुना लेहयेन्माषं लालामेहस्य शान्तये । सक्षौद्ररजनीं वात्र लिद्यान्निष्कत्रयं सदा ॥ असाध्यं नाशयेन्मेहं नित्यारोग्येश्वरो रसः ॥ अभ्रकभस्म, और बंगभस्म १ - १ भाग, पारा ( रस सिन्दूर या चन्द्रोदय ) २ भाग, और कायन बीजांका चूर्ण ४ भाग लेकर सबको एकत्र खरल करें । [ २४५ ] पलमात्रन्तु कृष्णाभ्रं तदर्धन्तु शिलाढयम् । जातीकोषफले मांसी तालीशैला लवङ्गकम् ॥ प्रत्येकं कोलमात्रन्तु वासानीरैर्विमर्दयेत् । शोषयित्वात पश्चाद्विदार्या पेपयेद्रसैः ॥ fat afrai कृत्वा पिपल्लीमधुना भजेत् । नाना नित्योदयश्चायं रसो विष्णुविनिर्मितः ॥ पञ्चकासान्निहन्त्याशु चिरकालोद्भवानपि । राजयक्ष्माणमप्युग्रं जीर्णज्वरमरोचकम् || धातुस्थं विषमाख्यञ्च तृतीयकचतुर्थकम् । अशसि कामलां पाण्डुमग्निमान्धं प्रमेहकम् ॥ सेवनादस्य कन्दर्परूपो भवति मानवः ॥ इसमेंसे नित्य प्रति १ मापा औषध शहदके साथ खाकर ऊपरसे १ तोला हल्दी का चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से दुस्साध्य लालामेह भी अवश्य नष्ट हो जाता है 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुद्ध पारा और गन्धक, २॥ - २॥ तोले लेकर दोनोंकी कज्जली बनायें और उसे बेल छाल, अरनी, अरलकी छाल, पाढलछाल, खम्भारीछाल, खरैटी, नागरमोथा, पुनर्नवा (बिसखपरा ), आमला, कटेला ( बड़ी कटेली), बांसेके पत्ते, बिदारीकन्द, और शतावरके ११-१२ तोले रस या काथ में पृथक् पृथक् घोटकर उसमें ५ - ५ माशे स्वर्ण, ( व्यवहारिक मात्रा - ४ रत्ती । हल्दीका चांदी और सोनामक्खीकी भस्म, ५ तोले कृष्णाचूर्ण ३ माशे । ) भ्रकभस्म, २॥ तोले मनसिल, और जायफल, जावित्री, जटामांसी, तालीसपत्र, इलायची, और लगमें से हरेकका ७|| माशे चूर्ण मिलाकर सबको १ दिन वासाके रसमें घोटकर धूप में सुखायें और फिर उसे दिन विदारीकन्दके रसमें घोटकर २-२ रत्तीकी गोलियां बनालें । (३६५५) नित्योदयरसः | ( र. रा. सुं.; र. सा. सं.; धन्व. । हिक्काश्वास ) सुशुद्धं पारदं गन्धं प्रत्येकं शुक्तिसम्मितम् । ततः कज्जलिकां कृत्वा मर्दयेच पृथक पृथक ।। बिल्वानिमन्थयोनाकाः काश्मरी पाटला बला मुस्तं पुनर्नवा धात्री गृहती पत्रकम् ॥ feart aहुपुत्री च येषां कर्षरर्भिषक् । सुवर्ण रजतं ताप्यं प्रत्येकं शाणमात्रकम् ॥ इनमें से १-१ गोली ( १ माशा) पीपलके चूर्ण और शहद के साथ सेवन करनेसे पांच प्रकार की पुरानी खांसी, भयङ्कर राजयक्ष्मा, जीर्णज्वर, अरुचि, धातुगतज्वर, विषमज्वर, तिजारी, चातुर्थिक For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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