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तृतीयो भागः ।
रसप्रकरणम् ]
इत्यादि रोग नष्ट होते, और अग्नि तथा बल वीर्यकी वृद्धि होती है
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(३६५४) नित्यारोग्येश्वरो रसः ( र. र. 1 मेहा. )
सूतं मृताभ्रवङ्गाभ्यां तुल्यभागं प्रकल्पयेत् । महानिम्बोत्थबीजस्य चूर्ण योज्यं त्रिभिः समम्॥ मधुना लेहयेन्माषं लालामेहस्य शान्तये । सक्षौद्ररजनीं वात्र लिद्यान्निष्कत्रयं सदा ॥ असाध्यं नाशयेन्मेहं नित्यारोग्येश्वरो रसः ॥
अभ्रकभस्म, और बंगभस्म १ - १ भाग, पारा ( रस सिन्दूर या चन्द्रोदय ) २ भाग, और कायन बीजांका चूर्ण ४ भाग लेकर सबको एकत्र खरल करें ।
[ २४५ ]
पलमात्रन्तु कृष्णाभ्रं तदर्धन्तु शिलाढयम् । जातीकोषफले मांसी तालीशैला लवङ्गकम् ॥ प्रत्येकं कोलमात्रन्तु वासानीरैर्विमर्दयेत् । शोषयित्वात पश्चाद्विदार्या पेपयेद्रसैः ॥ fat afrai कृत्वा पिपल्लीमधुना भजेत् । नाना नित्योदयश्चायं रसो विष्णुविनिर्मितः ॥ पञ्चकासान्निहन्त्याशु चिरकालोद्भवानपि । राजयक्ष्माणमप्युग्रं जीर्णज्वरमरोचकम् || धातुस्थं विषमाख्यञ्च तृतीयकचतुर्थकम् । अशसि कामलां पाण्डुमग्निमान्धं प्रमेहकम् ॥ सेवनादस्य कन्दर्परूपो भवति मानवः ॥
इसमेंसे नित्य प्रति १ मापा औषध शहदके साथ खाकर ऊपरसे १ तोला हल्दी का चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से दुस्साध्य लालामेह भी अवश्य नष्ट हो जाता है
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शुद्ध पारा और गन्धक, २॥ - २॥ तोले लेकर दोनोंकी कज्जली बनायें और उसे बेल छाल, अरनी, अरलकी छाल, पाढलछाल, खम्भारीछाल, खरैटी, नागरमोथा, पुनर्नवा (बिसखपरा ), आमला, कटेला ( बड़ी कटेली), बांसेके पत्ते, बिदारीकन्द, और शतावरके ११-१२ तोले रस या काथ में पृथक् पृथक् घोटकर उसमें ५ - ५ माशे स्वर्ण, ( व्यवहारिक मात्रा - ४ रत्ती । हल्दीका चांदी और सोनामक्खीकी भस्म, ५ तोले कृष्णाचूर्ण ३ माशे । ) भ्रकभस्म, २॥ तोले मनसिल, और जायफल, जावित्री, जटामांसी, तालीसपत्र, इलायची, और लगमें से हरेकका ७|| माशे चूर्ण मिलाकर सबको १ दिन वासाके रसमें घोटकर धूप में सुखायें और फिर उसे दिन विदारीकन्दके रसमें घोटकर २-२ रत्तीकी गोलियां बनालें ।
(३६५५) नित्योदयरसः
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( र. रा. सुं.; र. सा. सं.; धन्व. । हिक्काश्वास ) सुशुद्धं पारदं गन्धं प्रत्येकं शुक्तिसम्मितम् । ततः कज्जलिकां कृत्वा मर्दयेच पृथक पृथक ।। बिल्वानिमन्थयोनाकाः काश्मरी पाटला बला मुस्तं पुनर्नवा धात्री गृहती पत्रकम् ॥ feart aहुपुत्री च येषां कर्षरर्भिषक् । सुवर्ण रजतं ताप्यं प्रत्येकं शाणमात्रकम् ॥
इनमें से १-१ गोली ( १ माशा) पीपलके चूर्ण और शहद के साथ सेवन करनेसे पांच प्रकार की पुरानी खांसी, भयङ्कर राजयक्ष्मा, जीर्णज्वर, अरुचि, धातुगतज्वर, विषमज्वर, तिजारी, चातुर्थिक
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