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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२३४] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [ नकारादि ताम्बूलचर्विता मेहकासक्षयमरूधरा । । (३६२८) नागशोधनम् (२) नागवल्लभनामाऽयं रसो विश्वोपकारकः ॥ (अनु. त. । को. १) कस्तूरी, दालचीनी और सुहागेकी खील, तालकस्वरसे वाराश्चत्वारिंशद्विगालयेत् । ११-१॥ तोला तथा केशर, शिंगरफ और पीपल | तप्तं तप्तं विशुद्धत नागो नागेन्द्रगामिनी ॥ २॥२॥ तोला एवं अकरकरा, जावित्री, जायफल सीसेको पिघला पिघला कर ४० वार ताड़के और शुद्ध बछनाग ( मीठाषिव ) ५-५ तोला । रसमें बुझानेसे वह शुद्ध हो जाता है। सबके चूर्णको ३ दिन पानके रसमें घोटकर मूंगके (३६२९) नागशोधनम् (३) बराबर गोलियां बनावें। (र. प्र. सु. । अ. ४) इन्हें शहद और अद्रकके रसमें मिलाकर निर्गण्डीकाहरिद्रयो रसे नागं पढालयेत् । या पानमें रखकर खानेसे प्रमेह, खांसी, क्षय और एवं नागो विशुद्धः स्यान्मृस्फिोटादि वातज रोग नष्ट होते हैं। ' नाचरेत् ॥ (३६२७) नागशोधनम् (१) । सीसेको पिघला पिघला कर (कमसे कम ७ (र. सा. स. । पूर्वख.) बार) समान भाग मिश्रित संभाल और हल्दीके रसमें बुझानेसे वह शुद्ध हो जाता है। नागवङ्गे च गलिते रविदुग्धेन सेचिते।। ___ इस प्रकार शुद्ध सीसेकी भस्म से मूर्छा और त्रिवाराछुद्धिमायातः सच्छिद्रे हण्डिकान्तरे॥ स्फोटकादि विक स्फोटकादि विकार नहीं होते। एक हण्डीमें आकका दूध भरकर उसके (३६३०) नागसुन्दरसः ऊपर एक छिद्रयुक्त प्याला ढक दें और सीसे या (र. रा. सु. । अति. । र.र. स. । उ. खं. अ. १६) रांगको पिघलाकर इस छिद्र से उक्त हण्डीमें डालें। नागभस्मरसन्योमगन्धैरर्घपलोन्मितैः । इसी प्रकार ३ बार बुझानेसे सीसा और रांग शुद्ध कुर्वीत कज्जलीं श्लक्ष्णां पक्षिपेत्तदनन्तरम् ।। हो जाते हैं। द्विपलोन्मितरालायां द्रुतायां परिमिश्रिताम् । नोट-कभी कभी गर्म रांग या सीसा | भृष्टयक्षाक्षसिन्धृत्यवचान्योपद्विजीरकैः॥ हाण्डीके अन्दर द्रव पदार्थ में गिरकर इतने जोरसे सपथ्या विजया दिव्यैस्तुल्यांभैरवचूर्णितेः। उछलता है कि ऊपरवाले प्यालेको तोड़कर बाहर | मेलयेत्माक्तनं कल्कं भावयेत्तदनन्तरम् ॥ आ गिरता है, इस लिये इन्हें शोधन करते समय महानिम्बत्वचा सारैः काम्बोजीमूलजद्रवैः। सावधान रहना चाहिये कि सीसा या रांग उछल रसैर्नागबलायाश्च गुडूच्याश्च त्रिधा त्रिधा ॥ कर मस्तक आदि पर न आ लगे। । ततश्च गुटिका कार्या बदरास्थिममाणतः। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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