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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पमकरणम् ] तृतीयो भागः। [२२३] शहद मिलाकर उसे घृतसे चिकने किये हुवे मिट्टीके । तच्चूर्ण क्षीरमध्वाज्यैलौंडितं स्निग्धभाण्डके। पात्रमें भरकर उसके मुखपर शराव ढककर सन्धि | रुद्धा क्षिपेद्धान्यराशौ मासादुद्धत्य भक्षयेत् ॥ पर कपड़मिट्टी कर दें । तत्पश्चात् इस पात्रको द्विपलं वर्षपर्यन्तं जीवेश्चन्द्रार्कतारकम् । अनाजके ढेरमें दबा दें और एक मास पश्चात् तच्चूर्णापलं चाज्यैलिहेत्स्यात्पूर्ववत्फलम् ॥ निकालकर यथोचित मात्रानुसार सेवन करें। तच्चूर्ण त्रिफला मुण्डी भङ्गी निम्बो गुडूचिका । इसे १ मास तक सेवन करने से मनुष्यका | वचा चैषां समं चूर्ण मध्वाज्याभ्यां लिहेल्पलम।। शरीर स्वर्ण के समान कान्तिमान् और उसकी वर्षान्मृत्यु जरां हन्ति जीवेद्ब्रह्मदिनत्रयम् । दृष्टि गृध्रके समान तीक्ष्ण हो जाती है तथा निर्गुण्डीपत्र द्राव भाण्डे मृद्वग्निना पचेत् ॥ वह सर्व रोग और बलिपलित रहित हो जाता है। गुडवत्याकमापन्नं पीतं वान्तिविरेककृत् । १ वर्ष तक खानेसे दीर्घ जीवन और प्रबल निर्यान्तिकमयस्तस्यमुखनासाक्षिकर्णतः ॥ कामशक्ति प्राप्त होती है। राजयक्ष्मादिरोगांश्च सप्ताहेन विनाशयेत् । इसके सेवन कालमें शाक और अम्ल पदार्थों मासत्रयाञ्जरां इन्ति जीवेद्वर्षशतत्रयम् ॥ को छोड़कर यथेच्छ आहार करना चाहिये। | "ॐनमो माय गणपतये भूपतये कुबेराय स्वाहा' | इति भक्षणमन्त्रः॥ इस चूर्णको गोमूत्रके साथ पीनेसे अठारह पुष्य नक्षत्रमें प्रातःकाल निर्गुण्डी (संभाल) प्रकारके कुष्ठ, पामा, विचर्चिका, नाडीव्रण, गुल्म, | । नाडावण, गुल्म, की जड़की छाल उतारकर उसे छायामें सुखा कर शूल, तिल्ली और उदररोगांका नाश होता है। | चूर्ण बनावें । इसे ११ तोले (१ कर्ष) की मात्राइसे तक्रके साथ सेवन करनेसे मनुष्य समस्त नुसार १ पल (५ तोले ) बकरीके मूत्रके साथ रोगरहित, बलवान, गृध्रदृष्टि, बलि पलितरहित, | ६ मास तक पीनेसे मनुष्य अमर हो जाता है । पवनके समान वेगवाला और दिव्य रूपवान हो १ वर्ष तक सेवन करनेसे शिव समान हो जाता है। जाता है। __इस चूर्णको दूध, शहद और घीमें मिलाकर दो मासतक सेवन करनेसे पंडित हो जाता है। मिट्टीके चिकने बरतनमें भरकर उसके मुखको (३५९९) निर्गुण्डीकल्पः (२) शरावसे ढक दें और उस पर कपर मिट्टी कर दें। इस बरतनको अनाजके ढेरमें दबा दें और १ मास (र. र. र. । उपदेश ४) पश्चात् निकालकर सेवन करें। पुष्पार्के ग्राहयेत्यातनिर्गुण्डीमूलजा त्वचम् । इसमें से नित्य प्रति २ पल दवा १ वर्ष छापाशुष्का विचूाय कर्षमेकं पिवेत्सदा ॥ | तक सेवन करनेसे दीर्घायु प्राप्त होती है। अजामूत्रपलैकेन षण्मासादमरो भवेत् । । उपरोक्त चूर्णमें से आधा पल लेकर धीमें वर्षमात्रमयोगेण शिवतुल्यो भवेभरः॥ मिलाकर खानेसे भी दीर्घायु प्राप्त होती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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