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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अञ्जनमकरणम् ] तृतीयो भागः। [२१९] गवां मूत्रेण पिटिकां कामिकेन च कामलाम् ।। एकत्र मिलाकर वर्षा के शुद्ध जलसे घोटकर उशीररससंयुक्ता विषं वृश्चिकसम्भवम्॥ | बर्तियां बनावें। • हल्दी, नीमके पत्ते, पीपल, काली मिर्च, नागर तिमिर और पटल नाशक यह प्रयोग नागामोथा, बायबिडंग, और सांठ का समान भाग चूर्ण र्जुनने पटने के एक स्तम्भ पर लिखाया था। लेकर सबको बकरीके मूत्रमें घोटकर बेरकी गुठ- इन्हें स्त्रीके दूधमें घिसकर लगानेसे नवीन लीके बराबर गोलियां बनाकर छायामें सुखावें। | नेत्रपाक अवश्य नष्ट होजाता है। इन्हें पानीके साथ घिसकर आंखमें आंजनेसे | केसू ( टेसू ) के फूलेके रसके साथ लगानेतिमिर, शहदसे पटल, भंगरेके रससे रतौंधा, स्त्रीके से पिल्ल, पुष्प और सुर्सी तथा लोधके पानीके दूधसे फूला, गोमूत्रसे पिटिका, काजीसे कामला| साथ लगानेसे नवीन तिमिर नष्ट होता है। यदि और खसके काथके साथ घिसकर लगानेसे बिच्छूका आंखें बहुत समयसे बन्द हां तो इसे बकरेके मूत्रके विष नष्ट होता है। साथ घिसकर लगानेसे वे आसानी से खुल जाती (३५८४) नागार्जुनीवतिः हैं और साथ ही स्वच्छ भी हो जाती हैं। (र. का. थे.; र. र.; धन्व., वं. से.; भै. र.; (३५८५) नारायणाअनम् _. मा.; च. द; ग. नि. । नेत्ररोगा.) (वृ. यो. त. । त. १३१; वै. र. । नेत्र.) त्रिफलाव्योषसिन्धूत्थयष्टीतुत्थरसाधनम् । तुलस्या बिल्वपत्रस्य रसौ प्रायौ समांशको । प्रपौण्डरीकं जन्तु लोधं तानं चतुर्दशः ॥ ताभ्यां तुल्यं पयो नास्त्रितयं कांस्यभाजने ॥ द्रव्याण्येतानि सञ्चूर्ण्य वतिः कार्यानभोम्बुना। गजवल्लथा दृढं मद्य ताम्रेण महरं पुनः। नागार्जुनी तिमिराणां पटलानां तथैव च ॥ | कज्जलत्वं समुत्पाद्य तेनाञ्जितविलोचनः॥ नागार्जुनेन लिखिता स्तम्भे पाटलिपुत्रके। सरो नेत्ररुजं हन्ति सशूलां पाकजामपि॥ सद्यः कोपं च दुग्धेन स्त्रिया विजयते ध्रुवम् ॥ तुलसी और बेलके पत्तोंका रस १-१ भाग किंशुकस्वरसेनाथ पिल्लपुष्पकरक्तताः ।। तथा स्त्रीका दूध दो भाग लेकर तीनोंको कांसीकी अञ्जनाल्लोधतोयेन आसन्नतिमिरं जयेत् ॥ । थालीमें नागरबेलके पानके साथ तांबेकी मूसली से चिरं संछादिते नेत्रे बस्तमूत्रेण संयुता। | घोटें। जब कज्जलके समान हो जाय तो निकालकर उन्मीलयत्यकृच्छ्रेण प्रसादश्चाधिगच्छति ॥ सुरक्षित रक्खें । हरे, बहेडा, आमला, सांठ, मिर्च, पीपल, इसके लगानेसे नेत्रपाक और आंखकी पीड़ा सेंधानमक, मुलैठी, नीला थोथा, रसौत, प्रपौण्डरीक | नष्ट होती है । (पुण्डरिया), बायबिडंग, लोध और ताम्र भस्म ।। (नीम या किसी अन्य लकड़ीके सोटेमें तांबेका इन १४ चीजेंके महीन चूर्णको समान भाग लेकर । पैसा लगवाकर उससे घोटना चाहिये ।) For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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