________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सैलमकरणम् ] तृतीयो भागः।
[१९५] इसमें फाया भिगोकर योनिमें रखनेसे योनि- अर्कसुपकपलाशरसेन शूल नष्ट होता है।
कर्णरुजं वधिरं विनिहन्ति ॥ ( यह योग विप्लुता योनिमें हितकर है।) सोंठ, सेंधा नमक, पीपल, नागरमोथा, हींग, (३४९९) नागबलातैलम्
| बच और ल्हसन समान भाग मिश्रित १० तोले (वृ. नि. र.; भा. प्र.; वं. से.; ग. नि.; वृं. मा.;
लेकर पीसकर कल्क बनावें फिर २ सेर तिलके च. द. । वातरक्ता.)
तैलमें ४-४ सेर आक और ढाक (पलाश ) के
पत्तांका रस तथा यह कल्क मिलाकर समस्त रस शुद्धां पचेभागवलां तुलान्तु
जलने तक पकावें । तत्पश्चात् छान कर सुरजलार्मणे पादकषायशेषे ।
क्षित रक्खें। विसाव्य तैलाढकमत्र दद्यादजापयस्तैलविमिश्रितन्तु ॥
इसे कानमें डालनेसे कर्णपीड़ा और बधिरता नतस्य यष्टीमधुकस्य कल्क
नष्ट होती है। पृथक्पचेत्पश्चपलं विपकम् । नोट--यदि आक और पलाशका स्वरस न मिले तद्वातरक्तं शमयत्युदीर्ण
तो इनका काथ डालना चाहिये और उस बस्तिपदानेन हि सप्तरात्रात् ॥ दशामें कल्क १३ तोले ४ माशे लेना पीतं दशाहेन करोत्यरोगं
चाहिये । तैलं स्मृतं नागबलाहमेतत् ॥
नागराद्यं यमकम् १ सुला ( ६। सेर ) नागबला ( गंगेरन )
(. मा.; वृ. नि. र. । उदर.) को ३२ सेर पानीमें पकावें जब ८ सेर पानी शेष । रह जाय तो छानकर उसमें ८ सेर तैल, ८ सेर
घृतप्रकरणमें देखिये। बकरीका दूध और ५-५ पल (२५-२५ तोले) (३५०१) नारायणतैलम् (१) तगर तथा मुलैठीका कल्क मिलाकर पुनः पकावें।
(हा. सं. । स्था. ३ अ. २३) जब समस्त पानी जल जाय तो तैलको छान लें। इसकी बस्ति देनेसे ७ दिनमें और इसे पिला
स्योनाकः पाटला बिल्वं तर्कारी पारिभद्रकम् । नेसे १० दिनमें वातरक्त रोग नष्ट होता है ।
| अश्वगन्धा कण्टकारी प्रसारिणी पुनर्नवा ॥
श्वदंष्ट्रातिबला चैव बला च समभागिकी। (३५००) नागरादितैलम्
पादशेष जलद्रोणे कथितं परिस्रावयेत् ॥ (वृ. नि. र.; यो. र. । कर्ण. )
ततश्चेमानि योज्यानि भेषजानि भिषग्वरैः । नागरसैन्धवमागधिमुस्ता
शतपुष्पा वचा मांसी दारु शैलेयक बला॥ हिङ्गवचालशुनं तिलतैलम् ।
पतङ्गं चन्दनं कुष्ठं तथान्य रक्तचन्दनम् ।
For Private And Personal Use Only